पद ०७५


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केसवभट नर मुकुटमनि जिनकी प्रभुता बिस्तरी॥
कासमीर की छाप पाप तापन जग मंडन।
दृढ़ हरिभगति कुठार आन धर्म बिटप बिहंडन॥
मथुरा मध्य मलेच्छ बाद करि बरबट जीते।
काजी अजित अनेक देखि परचै भयभीते॥
बिदित बात संसार सब संत साखि नाहिंन दुरी।
केसवभट नर मुकुटमनि जिनकी प्रभुता बिस्तरी॥

मूलार्थकेशवभट्टजी वैष्णवजनोंके मुकुटमणि थे। उनकी प्रभुता संसारमें फैल गई थी। उनकी कासमीरकी छाप थी, अर्थात् लोग उन्हें काश्मीरी कहते थे। वे पापको नष्ट करते थे, और जगत्‌के आभूषण थे। अत्यन्त दृढ़ श्रीहरिभक्ति रूप कुल्हाड़ेके द्वारा वे अन्यधर्म रूप वृक्षोंको नष्ट करते रहते थे। मथुराके मध्यमें म्लेच्छ बरबटोंको अर्थात् अतिवादियोंको वाद करके उन्होंने जीत लिया था और उनका परिचय देखकर बड़े-बड़े काज़ी और अजित अर्थात् जो किसीसे नहीं जीते जाते थे, ऐसे असुर भी भयभीत हो चुके थे। यह बात संसारमें विदित थी, सब संत इसके साक्षी थे, और किसी प्रकारसे यह बात छिपी नहीं थी कि केशवभट्टजी वैष्णवजनोंके मुकुटमणि बन गए थे, और उनकी प्रभुता सारे संसारमें फैल गई थी।