पद ०७३


॥ ७३ ॥
सूर कबित सुनि कौन कबि जो नहिं सिरचालन करैं॥
उक्ति चोज अनुप्रास बरन अस्थिति अति भारी।
बचन प्रीति निर्बाह अर्थ अद्भुत तुक धारी॥
प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरिलीला भासी।
जनम करम गुन रूप सबै रसना परकासी॥
बिमल बुद्धि गुन और की जो यह गुन श्रवननि धरैं।
सूर कबित सुनि कौन कबि जो नहिं सिरचालन करैं॥

मूलार्थ – कौन ऐसा कवि है जो सूरदासजीकी कविता सुनकर प्रसन्नतासे सिर न हिला दे? उनकी उक्तियाँ, उक्तियोंका उत्साह, अनुप्रास और वर्णोंकी स्थिति अत्यन्त विस्तृत हुआ करती थी। वचन और प्रीतिका निर्वाह, निरुपम अनूठे अर्थ, अद्भुत तुक – यह उनकी विशेषता थी। सूरदासजीके हृदयमें दिव्यदृष्टि प्रतिबिम्बित थी, अर्थात् भौतिक नेत्रके न होनेपर भी भगवान्‌ने उन्हें दिव्यदृष्टि दे दी थी। सूरदासजीके हृदयमें बिना देखे ही श्रीहरिकी लीलाएँ भास गईं थीं। भगवान्‌के जन्म, भगवान्‌के कर्म, भगवान्‌के गुण और भगवान्‌के रूप – सब कुछ उनकी रसनामें कविताके रूपमें प्रकाशित हुए थे। जो उस गुणको श्रवणोंसे धारण करेगा, ऐसे अन्य व्यक्तिकी भी बुद्धि विमल हो जाएगी। कौन ऐसा कवि है जो सूरदासजीकी कविता सुनकर सिर न हिला दे?