पद ०७०


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बिनय ब्यास मनो प्रगट ह्वै जग को हित माधव कियो॥
पहिले बेद बिभाग कथित पूरान अष्टदस।
भारतादि भागवत मथित उद्धार्यो हरिजस॥
अब सोधे सब ग्रंथ अर्थ भाषा बिस्तार्यो।
लीला जय जय जयति गाय भवपार उतार्यो॥
जगन्नाथ इष्ट वैराग्य सींव करुनारस भीज्यो हियो।
बिनय ब्यास मनो प्रगट ह्वै जग को हित माधव कियो॥

मूलार्थमाधवदासजी परम भागवत ब्राह्मण थे। उनकी पत्नीके निधनके पश्चात् वे परम भगवत्परायण हो गए थे। उनके लिये नाभाजी कहते हैं कि ऐसा लगता है मानो विनयसे युक्त व्यासजीने ही माधवदासजीके रूपमें प्रकट होकर जगत्‌का हित किया। जिन वेदव्यासजीने पहले वेदोंका विभाग किया, फिर अष्टादश अर्थात् अठारह पुराणोंको गाया, और महाभारत और भागवत आदि इन सबका मन्थन करके इनमें जो भगवत्प्रेमका नवनीत है, भगवद्यश है, धीरे-धीरे उस श्रीहरियशको उद्धृत किया। उन्हींने अब माधवदासजीके रूपमें श्रेष्ठ सद्ग्रन्थोंको शोधा और भाषा में अर्थात् उत्कलभाषामें (उड़िया भाषामें) उन ग्रन्थोंके अर्थका विस्तार किया। जय जय जयति – माधवदासजीने इस प्रकार संबोधन करके भगवल्लीला गाकर संसारके लोगोंको भव­पार उतारा। उनके इष्ट जगन्नाथजी थे, वे वैराग्यकी सीमा बने, और उनका हृदय करुणारससे भीगा रहता था।

कहते हैं कि एक बार माधवदासजीको संग्रहिणी रोग हुआ। उन्हें बार-बार शौच जाना पड़ता था। तब भगवान्‌ने उनकी सेवा की। भगवान्‌से जब माधवदासजीने पूछा – “भगवन्! आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?” तो उन्होंने कहा – “प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है, तुम्हारा मन है तो लो अब पन्द्रह दिन मैं प्रारब्ध भोगा करूँगा।” इसलिये आज भी जगन्नाथजी ज्येष्ठके कृष्णपक्षमें पन्द्रह दिन तक माधवदासजीके लिये रोगीके रूपमें रहते हैं। अर्थात् उन दिनों भगवान्‌के लिये रुग्णके जैसी औषधियाँ दी जाती हैं। ऐसे माधवदासजी महाराज वृन्दावनमें आए और भगवल्लीन हो गए। श्रीमाधवदासजी महाराजकी जय!