॥ ५५ ॥
और जुगन ते कमलनयन कलिजुग बहुत कृपा करी॥
बीच दिए रघुनाथ भक्त सँग ठगिया लागे।
निर्जन बन में जाय दुष्ट क्रम किये अभागे॥
बीच दियो सो कहाँ राम कहि नारि पुकारी।
आए सारँगपानि सोकसागर ते तारी॥
दुष्ट किये निर्जीव सब दासप्रान संज्ञा धरी।
और जुगन ते कमलनयन कलिजुग बहुत कृपा करी॥
मूलार्थ – कमलनेत्र भगवान्ने और युगोंकी अपेक्षा कलियुगमें बहुत कृपा की है। और युगोंमें इतने शीघ्र दर्शन नहीं होते, जितने शीघ्र कलियुगमें हो जाते हैं। इस सिद्धान्तको स्पष्ट करते हुए नाभाजी एक भक्तदम्पतीका दृष्टान्त प्रस्तुत करते हैं। नाभाजी कहते हैं, एक भक्तदम्पती द्विरागमन करके आ रहे थे, अर्थात् भक्त युवक नवपत्नी भक्ता युवतीको लेकर अपने घर आ रहा था। क्योंकि युवक विवाह करके पत्नीको ला रहा था, उसे ससुरालमें बहुत-सा धन मिला था। दोनों भगवद्भजन करते हुए आ रहे थे, और यह कह रहे थे – “चलो! अब गृहस्थाश्रमका प्रारम्भ भगवान्की भक्तिसे करेंगे। हम दोनों भगवान्की सेवा करेंगे।” उसी समय भक्तोंके साथ कुछ ठग लग गए। उन्होंने कहा – “चलो! हम तुमको तुम्हारे घर ले चलेंगे।” भक्तोंने कहा – “हम तो तुमको पहचानते नहीं। तुमको अपने साथ चलनेके लिये कैसे कहें?” ठगियोंने कहा – “अरे! रघुनाथजी हैं ना हमारे-तुम्हारे बीचमें। यदि हम कुछ अपराध करेंगे तो भगवान् रघुनाथजी हमें दण्ड देंगे।” भक्ता युवतीने कहा – “ठीक तो है। अब हम लोग रघुनाथजीपर विश्वास करें, भले ही इनकी वृत्ति दूषित हो। हमको दिख तो रहा है इनकी वृत्तिमें कोई सुन्दर अवधारणा नहीं है, परन्तु जब रघुनाथजीको बीच दे दिया तो उनकी मर्यादाका हम पालन करेंगे। प्रभु मर्यादापुरुषोत्तम हैं।” वे चलने लगे। जब घोर जङ्गल आया तब ठगियोंने भक्त युवकको मार डाला। इसलिये नाभाजीको कहना पड़ा – दुष्ट क्रम किये अभागे। जब ठगियोंने पतिको मार डाला और पत्नीको लूटना प्रारम्भ किया, तब बीच दियो सो कहाँ राम कहि नारि पुकारी अर्थात् उस भक्ता युवतीने कहा – “जिन भगवान् रामको हमारे बीचमें रखा गया था वे भगवान् राम कहाँ गए?” ब्राह्मणपत्नीका यह क्रन्दन सुनकर सारँगपानि अर्थात् धनुर्धारी भगवान् राम आ गए। शार्ङ्गधन्वा प्रभु श्रीरामने सभी दुष्टोंको अपने बाणोंकी वर्षा करके मार डाला, और भक्त युवकको जीवित करके अपनी मर्यादाकी स्थापना कर दी। मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीरामकी जय!