पद ०४९


॥ ४९ ॥
संतसाखि जानत सबै प्रगट प्रेम कलिजुग प्रधान॥
भक्तदास इक भूप श्रवन सीता हर कीनो।
मार मार करि खड्ग बाजि सागर मँह दीनो॥
नरसिँह को अनुकरन होइ हिरनाकुस मार्यो।
वहै भयो दसरथहि राम बिछुरत तन छार्यो॥
कृष्ण दाम बांधे सुने तेहि छन दीयो प्रान।
संतसाखि जानत सबै प्रगट प्रेम कलिजुग प्रधान॥

मूलार्थ – संत साक्षी हैं और सभी लोग जानते हैं कि कलियुगमें प्रत्यक्ष प्रेम ही प्रधान है। इस संबन्धमें नाभाजी कतिपय भक्तोंकी कथाका उद्धरण देते हैं। केरलमें कुलशेखर नामके महाराज, जो भक्तोंके भक्त थे, उन्होंने एक बार कथामें सुना कि रावणने सीताजीका हरण कर लिया है। इतनेपर उन्हें भावावेश आ गया। “मारो रावणको, मारो रावणको” – यह कहते हुए कुलशेखरजीने हाथमें तलवार ले ली, घोड़ेपर आरूढ़ हो गए और घोड़ेको सागरमें कुदा दिया। तब भगवान् रामजीने आकर दर्शन दिये और कहा – “अब लौट चलिये, रावणको मैंने मार डाला है।” इसी प्रकार एक भक्तने जब नरसिंहका अभिनय किया तब हिरण्यकशिपुके अभिनय करनेवालेको मार डाला, उसका पेट फाड़ दिया और वही जब दशरथजीका अनुकरण करने लगे तो इतने भावमें आए कि रामजीके वियोगमें उन्होंने अपना शरीर ही छोड़ दिया। एक महिलाने कथामें श्रीकृष्ण भगवान्‌का उलूखल­बन्धन सुना। वे नहीं सहन कर पाईं और उसी समय उन्होंने प्राण दे दिये। इस प्रकार संत साक्षी हैं और सभी लोग जानते हैं कि कलियुगमें प्रत्यक्ष प्रेम ही प्रधान है।