पद ०४६


॥ ४६ ॥
कृष्ण कृपा कोपर प्रगट बिल्वमंगल मंगलस्वरूप॥
करुनामृत सुकबित्त जुक्ति अनुछिष्ट उचारी।
रसिक जनन जीवन जु हृदय हारावलि धारी॥
हरि पकरायो हाथ बहुरि तहँ लियो छुटाई।
कहा भयो कर छुटैं बदौं जो हियतें जाई॥
चिंतामनि सँग पाइ कै ब्रजबधु केली बरनि अनूप।
कृष्ण कृपा कोपर प्रगट बिल्वमंगल मंगलस्वरूप॥

मूलार्थश्रीबिल्वमङ्गलजी मङ्गलस्वरूप बनकर भगवान् श्रीकृष्णकी कृपाके पात्रके रूपमें प्रकट हुए। कोपरका अर्थ है पात्र। मानसकारने भी पात्रके अर्थमें कोपरका प्रयोग किया है, यथा – कनक कलश मनि कोपर रूरे (मा. १.३२४.५)। बिल्वमङ्गलजीने श्रीकृष्ण­कर्णामृतम् नामक प्रबन्धकाव्यमें ऐसी दिव्य कविताओंकी रचना की, जिनकी युक्तियाँ किसीके द्वारा उच्छिष्ट नहीं हैं अर्थात् किसीने उन युक्तियोंपर कभी चर्चा ही नहीं की होगी, उनकी युक्तियाँ सर्वथा नवीन हैं। ये युक्तियाँ रसिक जनोंके जीवनधनके समान हैं। इनको श्रीकृष्ण­प्रेम­रसिकोंने हृदयमें विजयकी हारावलीके समान धारण किया है। जब बिल्वमङ्गलजीने अपने नेत्र स्वयं फोड़ लिये तब व्रजकी ओर जाते हुए उनका हाथ भगवान्‌ने स्वयं पकड़ा और उनको गन्तव्य तक पहुँचाया। जब छोड़कर जाने लगे तो बिल्वमङ्गलने प्रभुका हाथ पकड़ लिया, प्रभुने झटककर छुड़ा लिया। बिल्वमङ्गलने कहा – “कोई बात नहीं! हाथ छूटनेसे क्या हुआ, यदि आप हृदयसे जाएँ तो मैं आपको वीर समझूँ और वीर कहूँ,” –

हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम्।
हृदयाद्यदि निर्यासि पौरुषं गणयामि ते॥

चिन्तामणिका संग पाकर बिल्वमङ्गलजीने व्रजवधुओंकी अनुपम क्रीडाका वर्णन किया। इस प्रकार मङ्गलस्वरूप बिल्वमङ्गलजी श्रीकृष्ण­कृपाके कोपर अर्थात् पात्रके रूपमें प्रकट हुए।

बिल्वमङ्गलके संबन्धमें ऐसा कहा जाता है कि वे दक्षिणात्य ब्राह्मण थे। संयोगसे चिन्तामणि नामक एक वाराङ्गनासे उनका संग हो गया था। उसपर वे बहुत आसक्त हो चुके थे। एक दिन जब पिताके श्राद्धके लिये वे अपने घर आ गए, तब श्राद्ध संपन्न होनेके पश्चात् वर्षाकालीन अंधेरी रातमें बिल्वमङ्गलको चिन्तामणिका स्मरण आया। वे उसके यहाँ चल पड़े। नदी बढ़ी हुई थी, कोई साधन न था। वहाँ एक शव बहता हुआ जा रहा था, उसीका सहारा लेकर वे किसी प्रकार पार हुए। नदी पार करके उन्होंने देखा कि चिन्तामणिके घरमें प्रवेश करनेके लिये भी कोई साधन न था। घरकी छतसे एक सर्प लटक रहा था। उसका सहारा लेकर वे छतके ऊपर चढ़ गए और ऊपरसे नीचे आकर गिरे। स्वर सुनकर चिन्तामणिने आकर देखा तो बिल्वमङ्गल रक्तसे लथपथ थे। तब उसने कहा – “अरे! मेरे इस हाड़-मांस वाले शरीरपर तुम्हें इतना प्रेम है, इतना प्रेम यदि तुम्हें भगवान्‌के चरणोंमें हो जाता तो तुम संसार­सागरसे पार हो जाते।” यह सुनकर बिल्वमङ्गलके जीवनमें एक प्रभात आ गया। वैराग्यकी भावना उमड़ गई। वे तुरन्त संसारके बन्धनोंको छोड़कर व्रजकी ओर चल पड़े। व्रज पहुँचने ही वाले थे कि मार्गमें एक सुन्दरीपर बिल्वमङ्गलकी दृष्टि पड़ी, जो पनघटमें जल भरने आई थी। उसके पीछे-पीछे बिल्वमङ्गल उसके घर तक चले गए और द्वारपर बैठे रहे। सुन्दरीके पतिने कहा – “भगवन्! आप क्या चाहते हैं?” बिल्वमङ्गलने कहा – “आप अपनी पत्नीको मेरे पास एक बार बुला दीजिये।” पतिने अपनी पत्नीसे कहा – “संतचरणके दर्शन करने चलो और शृङ्गार करके चलो।” वह शृङ्गार करके इनके दर्शनोंके लिये आई। बिल्वमङ्गलने कहा – “मुझे दो बड़े-बड़े सूजे दे दीजिये।” वह ले आई। दोनों सूजे उन्होंने अपनी आँखोंमें भोंक लिये। दोनों आँखें फूट गईं। वह महिला “हाय-हाय” करती हुई रोने लगी। उसके पति भी आ गए। बिल्वमङ्गलने कहा – “नहीं! इन आँखोंने मुझे बहुत धोखा दिया है, इसलिये इन्हें मैंने दण्ड दे दिया। अब तो भगवान् मेरी रक्षा करेंगे ही।” अब क्या था, बिल्वमङ्गल श्रीवृन्दावनकी ओर चल पड़े। वे एक कुएँमें गिर पड़े। भगवान्‌ने उन्हें निकाला। भगवान् उनका हाथ पकड़कर उन्हें रमणरेती पर्यन्त ले गए। और जब भगवान् जाने लगे, तब बिल्वमङ्गलने भगवान्‌का हाथ पकड़ लिया। भगवान्‌ने हाथ झटक दिया। तब बिल्वमङ्गलने कहा, कोई बात नहीं –

बाँह छुड़ाये जात हो निर्बल जान के मोहि।
हिरदय से जब जाओगे बीर बदौंगो तोहि॥

अब चिन्तामणि भी वहाँ आ गई। उसके मनमें भी दृढ़ वैराग्य हो गया। अब एक दिन बिल्वमङ्गलको प्रभुने प्रसाद भिजवाया। बिल्वमङ्गलने वह प्रसाद स्वयंके लिये भी रखा और चिन्तामणिको भी बुला लिया, क्योंकि चिन्तामणिमें अब बिल्बमङ्गलका गुरुभाव जग गया था। इसीलिये उन्होंने कृष्ण­कर्णामृतम्‌का मङ्गलाचरण करते हुए लिखा –

चिन्तामणिर्जयतु सोमगिरिर्गुरुर्मे शिक्षागुरुश्च भगवान् शिखिपिच्छमौलिः।
यत्पादकल्पतरुपल्लवशेखरेषु लीलास्वयंवररसं लभते जयश्रीः॥

(कृ.क.अ. १.१)

फिर दूसरे दिन भगवान्‌ने प्रसादकी दो दोनियाँ भेजीं, बिल्वमङ्गलके लिये भी और चिन्तामणिके लिये भी। इस प्रकार नाभाजीने कहा – चिंतामनि सँग पाइ कै ब्रजबधु केली बरनि अनूप। बिल्वमङ्गलजीने अपनेको धन्य कर लिया और उनके जीवनमें एक प्रकारका प्रभात आ गया।