पद ०३९


॥ ३९ ॥
पैहारी परसाद तें सिष्य सबै भए पारकर॥
कील्ह अगर केवल्ल चरनब्रत हठी नरायन।
सूरज पुरुषा पृथू त्रिपुर हरिभक्ति परायन॥
पद्मनाभ गोपाल टेक टीला गदाधारी।
देवा हेम कल्यान गंग गंगासम नारी॥
विष्णुदास कन्हर रँगा चाँदन सबिरी गोबिँद पर।
पैहारी परसाद तें सिष्य सबै भए पारकर॥

मूलार्थश्रीपयहारीजी महाराजके प्रसादसे सभी शिष्य, जिनकी अभी गणना की जाएगी, संसार­सागरसे भक्तोंको पार करानेवाले हो गए अर्थात् संसार­सागरसे भक्तोंको पार करनेमें समर्थ हुए। इनमेंसे (१) श्रीकील्हदासजी (२) श्रीअग्रदासजी (३) श्रीकेवलदासजी (४) चरणब्रत अर्थात् श्रीचरणदासजी महाराज (५) श्रीहठी नारायणदासजी महाराज (६) श्रीसूरजदासजी महाराज (७) श्रीपुरुषाजी महाराज (८) श्रीपृथुदासजी (९) श्रीत्रिपुरदासजी, जो हरिभक्ति­परायण हुए (१०) श्रीपद्मनाभजी (११) श्रीगोपालजी (१२) श्रीटेकरामजी (१३) श्रीटीलादासजी (१४) श्रीगदाधारीजी (१५) श्रीदेवा पण्डाजी (१६) श्रीहेमजी (१७) श्रीकल्याणजी (१८) गङ्गाजीके समान पवित्र गंगाबाईजी (१९) श्रीविष्णुदासजी (२०) श्रीकान्हरदासजी (२१) श्रीरङ्गजी (२२) श्रीचाँदनजी (२३) श्रीसबीरीजी – ये सब गोविन्द अर्थात् श्रीराम के परायण हुए।

इनमेंसे कील्हदासजी और अग्रदासजीकी चर्चा आगेके छप्पयोंमें होगी। शेष संतोंकी चर्चा भक्तमालपर मेरे द्वारा अतिशीघ्र प्रस्तुत किये जाने वाले भक्तकृपाभाष्यमें होगी।