पद ०३७


॥ ३७ ॥
अनंतानंद पद परसि कै लोकपाल से ते भये॥
जोगानंद गयेस करमचँद अल्ह पैहारी।
सारिरामदास श्रीरंग अवधि गुन महिमा भारी॥
तिनके नरहरि उदित मुदित मेघा मंगलतन।
रघुबर जदुबर गाइ विमल कीरति संच्यो धन॥
हरिभक्ति सिन्धुबेला रचे पानि पद्मजा सिर दये।
अनंतानंद पद परसि कै लोकपाल से ते भये॥

मूलार्थअनन्तानन्दजीके श्रीचरणकमलका स्पर्श करके न जाने कितने लोग लोकपाल जैसे हो गए, अथवा वे लोग लोकपालोंके समान सर्वगुणसंपन्न हो गए, ऐश्वर्यसंपन्न हो गए। उनमें प्रमुख हैं – (१) श्रीयोगानन्दजी (२) श्रीगयेशजी (३) श्रीकर्मचन्द्रजी (४) श्रीअल्हजी (५) श्रीपयहारीजी (६) श्रीसारिरामदासजी और (७) श्रीरङ्गजी – जो गुणोंकी अवधि और महामहिमा­संपन्न हुए। (८) उन्हींकी परम्परामें श्रीनरहर्यानन्दजी उदित हुए, जो मेघके समान थे, जिनका मङ्गलमय शरीर था, और जिन्होंने रघुवर और यदुवरके यशको गाकर विमल कीर्तिका संचय किया था। जिनके मस्तकपर अनन्तानन्दजीने अपना करकमल रखा, उन्होंने भगवद्भक्ति­सागरकी वेलाकी रचना कर दी, अर्थात् भगवद्भक्ति­सागरमें सीमाकी रचना कर दी, जिसका वे उल्लङ्घन नहीं कर सकते थे। ऐसे श्रीअनन्तानन्दजीके चरणकमलका स्पर्श करके बहुत-से लोग लोकपालके समान हो गए।

क्योंकि लोकपाल आठ ही कहे जाते हैं, अतः नाभाजीने अनन्तानन्दजीके आठ शिष्योंका गणन किया है। अनन्तानन्दजीके चरणका स्पर्श करके योगानन्द, गयेश, कर्मचन्द्र, अल्ह, पयहारी, सारिरामदास, श्रीरङ्ग और श्रीनरहरिदास – ये आठ लोकपाल जैसे हो गए। अब नाभाजी पयहारीजी महाराजकी चर्चा करते हैं, जिन्हें अनन्तानन्दजीके परिकरोंमें शिरोमणि माना जाता है और जिनकी चर्चा नाभाजीने भक्तमालमें दो बार की – पहली बार ३८वें पदमें और दूसरी बार १८५वें पदमें। प्रायशः एक भक्तकी चर्चा भक्तमालकारने एक-एक ही छप्पयमें की है, और कहीं-कहीं तो अनेक भक्तोंकी चर्चा एक छप्पयमें समेट दी है। परन्तु पयहारीजी महाराज अर्थात् कृष्णदासजी महाराजके प्रति कितनी निष्ठा है भक्तमालकारको कि दो छप्पयोंमें इन्होंने उनकी चर्चा की, और भिन्न-भिन्न स्थानोंपर भी उनकी चर्चा ये करते ही रहते हैं। नाभाजी पयहारीजीकी चर्चाका प्रारम्भ बहुत ही आलंकारिक छप्पयसे कर रहे हैं –