॥ ३० ॥
सँप्रदाय सिरोमनि सिंधुजा रच्यो भक्ति बित्तान॥
बिष्वकसेन मुनिवर्य सुपुनि शठकोप प्रनीता।
बोपदेव भागवत लुप्त उधर्यो नवनीता॥
मंगल मुनि श्रीनाथ पुंडरीकाच्छ परमजस।
राममिश्र रसरासि प्रगट परताप परांकुस॥
यामुन मुनि रामानुज तिमिरहरन उदय भान।
सँप्रदाय सिरोमनि सिंधुजा रच्यो भक्ति बित्तान॥
मूलार्थ – सिंधुजा अर्थात् श्रीलक्ष्मीजीने सभी संप्रदायोंकी शिरोमणि भक्तिके लिये कुछ आचार्योंको वितानके समान बनाया। इनमें हैं (१) मुनिवर्य विष्वक्सेनजी (२) परमपुनीत शठकोपजी (३) वोपदेवजी, जिन्होंने भागवतजीपर परमहंसप्रिया नामक टीका लिखकर भागवतजीमें छिपे हुए भक्तिनवनीतको प्रकट किया (४) मङ्गलमुनि श्रीनाथजी (५) परम यशस्वी पुण्डरीकाक्षजी (६) रसके राशि श्रीराममिश्रजी (७) प्रत्यक्ष प्रकट प्रतापसे संपन्न पराङ्कुशजी (८) यामुनाचार्यजी, जिन्होंने आलवन्दारस्तोत्रकी रचना की (जो वैष्णव संप्रदायमें बहुत प्रसिद्ध हुआ) और (९) रामानुजाचार्यजी जो अन्धकारके हरणके लिये उदयकालीन सूर्यके समान हुए तथा जिन्होंने प्रस्थानत्रयीपर भाष्य लिखकर जगद्गुरुत्व प्राप्त किया। कहा यह जाता है कि रामानुजाचार्यजी साक्षात् शेषके अवतार हैं। इसलिये अगले छप्पयमें नाभाजी उनके लिये कहते हैं –