पद ०२९


॥ २९ ॥
रमा पद्धति रामानुज विष्णुस्वामि त्रिपुरारी।
निम्बादित्य सनकादिका मधु कर गुरु मुख चारि॥

मूलार्थ – यहाँ भी रमा शब्द और रामानुज शब्द – दोनों श्लेषमें हैं। रमा शब्द श्रीसीताजीके लिये भी प्रयुक्त हुआ है, यथा मानसकारने स्वयं कहा है –

अति हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुनि पुनि रमा।
का देउँ तोहि त्रैलोक महँ कपि किमपि नहिं बानी समा॥

(मा. ५.१०७.९)

यहाँ रमा शब्दका अर्थ है सीताजी। रमा अर्थात् सीताजीकी पद्धतिमें राम अर्थात् श्रीजगद्गुरु रामानन्दाचार्यजी, और इसी प्रकार रमा अर्थात् लक्ष्मीजीकी पद्धतिमें अनुज अर्थात् रामानुज श्रीजगद्गुरु रामानुजाचार्यजी – इस प्रकार सीताजीकी पद्धतिके आचार्य श्रीरामानन्दाचार्य, लक्ष्मीजीकी पद्धतिके आचार्य श्रीरामानुजाचार्य, रुद्रसंप्रदायके आचार्य श्रीविष्णुस्वामी, सनकादि­संप्रदायके आचार्य श्रीनिम्बादित्य (निम्बार्काचार्य) और ब्रह्म­संप्रदायके गुरु श्रीमध्वाचार्य स्वयं ब्रह्माजी हैं।

अब प्रसंगोपात्त श्रीरामानुज­संप्रदायके कतिपय आचार्योंका वर्णन करनेके लिये नाभाजी उपक्रम करते हैं –