॥ २७ ॥
उरग अष्टकुल द्वारपति सावधान हरिधाम थिति॥
इलापत्र मुख अनँत अनँत कीरति बिस्तारत।
पद्म संकु पन प्रगट ध्यान उरते नहीं टारत॥
अँशुकंबल बासुकी अजित आग्या अनुबरती।
करकोटक तच्छक सुभट्ट सेवा सिर धरती॥
आगमोक्त शिवसंहिता अगर एकरस भजन रति।
उरग अष्टकुल द्वारपति सावधान हरिधाम थिति॥
मूलार्थ – भगवान् श्रीरामके साकेतके आठ श्रेष्ठ सर्प द्वारपाल हैं, जो सावधान होकर भगवान्के साकेत धाममें स्थित रहते हैं। उनके नाम हैं – (१) इलापत्र (२) अनन्त (३) पद्म (४) शङ्कु (५) अंशुकम्बल (६) वासुकि (७) कर्कोटक और (८) तक्षक। इनमेंसे इलापत्र और अनन्त – ये अनन्त मुखोंसे भगवान्की कीर्तिका विस्तार करते रहते हैं। पद्म और शङ्कु – इनका प्रण प्रकट है, ये अपने मनसे भगवान्के ध्यानको कभी नहीं दूर करते। अंशुकम्बल और वासुकि – ये निरन्तर अजित भगवान् श्रीरामकी आज्ञाका अनुवर्तन करते रहते हैं। कर्कोटक और तक्षक – ये वीर सेवा रूप पृथ्वीको अपने सिरपर धारण किये रहते हैं। श्रीअग्रदासजी कहते हैं कि ये आठों आगमोक्त शिवसंहिता अर्थात् अहिर्बुध्न्यसंहिताके अनुसार भगवान्की भक्तिमें एकरस निमग्न रहते हैं।
॥ श्रीः ॥
॥ समस्त भक्तोंकी जय हो ॥