॥ २६ ॥
श्वेतद्वीप के दास जे श्रवन सुनो तिनकी कथा॥
श्रीनारायन बदन निरंतर ताही देखैं।
पलक परै जो बीच कोटि जमजातन लेखैं॥
तिनके दरसन काज गए तहँ बीनाधारी।
श्याम दई कर सैन उलटि अब नहिं अधिकारी॥
नारायन आख्यान दृढ़ तहँ प्रसंग नाहिन तथा।
श्वेतद्वीप के दास जे श्रवन सुनो तिनकी कथा॥
मूलार्थ – श्वेतद्वीपके जो भक्त हैं, उनकी कथा कानसे सुनिये। वे श्रीनारायणके मुखकमलको निरन्तर निहारते रहते हैं। एक भी पलक पड़ने भरका जब अन्तर पड़ता है तो उन्हें करोड़ों यमयातनाओंके समान कष्ट होता है। एक बार श्वेतद्वीपके भक्तोंका दर्शन करनेके लिये वीणापाणि नारदजी वहाँ गए। श्वेतद्वीपके भक्त निरन्तर भगवान्को निहारनेमें मग्न थे। भगवान्ने नेत्रका संकेत देकर नारदजीसे कहा – “लौट आओ, वहाँ कोई तुम्हारे ज्ञानका अधिकारी नहीं है।” जिस प्रकार अन्यत्र नारायणका आख्यान होता है, वह प्रसंग वहाँ नहीं है अर्थात् वहाँ कोई सुनेगा ही नहीं।