॥ २५ ॥
मध्यदीप नवखंड में भक्त जिते मम भूप॥
इलाबर्त आधीस संकरषन अनुग सदाशिव।
रमनक मछ मनु दास हिरन्य कूर्म अर्जम इव॥
कुरु बराह भूभृत्य बर्ष हरिसिंह प्रहलादा।
किंपुरुष राम कपि भरत नरायन बीनानादा॥
भद्राश्व ग्रीवहय भद्रश्रव केतु काम कमला अनूप।
मध्यदीप नवखंड में भक्त जिते मम भूप॥
मूलार्थ – मध्यद्वीप अर्थात् जम्बूद्वीपके नवों खण्डोंमें जो भक्त हैं, वे मेरे राजा हैं। यहाँ प्रत्येक खण्डके नाम, उनके अधीश्वर भगवान्के नाम, और उनके प्रसिद्ध परिकर भक्तके नामका वर्णन है। जैसे – (१) इलावर्त नामक खण्डके अधीश्वर भगवान् संकर्षण हैं, उनके अनुगामी सदाशिव हैं। (२) इसी प्रकार रमणकखण्डके अधीश्वर भगवान् मत्स्य हैं, और उनके भक्त मनु अर्थात् वैवस्वत मनु हैं, जिन्हें सत्यव्रत भी कहते हैं (भागवत ८.२४.५८के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तरके राजर्षि सत्यव्रत ही इस वैवस्वत मन्वन्तरके मनु हैं)। (३) हिरण्यखण्डके ईश्वर भगवान् कूर्म हैं, और उनके सेवक अर्यमा हैं। (४) इसी प्रकार कुरुखण्डके अधीश्वर हैं भगवान् वराह और उनकी सेविका हैं भूदेवी। (५) इसी प्रकार हरिवर्षखण्डके ईश्वर हैं भगवान् नृसिंह और उनके सेवक हैं परम भागवत प्रह्लाद। (६) किंपुरुषखण्डके अधीश्वर हैं भगवान् राम और उनके सेवक हैं श्रीहनुमान्जी महाराज। (७) भरतखण्डके अधीश्वर हैं नारायण और उनके सेवक हैं वीणापाणि नारद। (८) भद्राश्वखण्डके अधीश्वर हैं हयग्रीव और उनके सेवक हैं भद्रश्रवा। (९) केतुमालखण्डके अधीश्वर हैं भगवान् कामेश्वर और उनकी सेविका हैं अनुपमेय कमला अर्थात् लक्ष्मीजी।