पद ०२४


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सप्त द्वीप में दास जे ते मेरे सिरताज॥
जम्बुद्वीप अरु प्लच्छ सालमलि बहुत राजरिषि।
कुस पबित्र पुनि क्रौंच कौन महिमा जाने लिखि॥
साक बिपुल बिस्तार प्रसिद्ध नामी अति पुहकर।
पर्बत लोकालोक ओक टापू कंचनघर॥
हरिभृत्य बसत जे जे जहाँ तिन सन नित प्रति काज।
सप्त द्वीप में दास जे ते मेरे सिरताज॥

मूलार्थ – सप्तद्वीपमें जितने वैष्णव भक्त हैं वे मेरे सिरके आभूषण हैं। जैसे (१) जम्बूद्वीप (२) प्लक्षद्वीप और (३) शाल्मलि­द्वीपमें बहुत-से राजर्षि हैं। इसी प्रकार पवित्र (४) कुशद्वीप और (५) क्रौञ्चद्वीपमें भी इतने बड़े राजर्षि हैं कि जिनकी महिमाको लिखकर कौन जान सकता है, अथवा जिनकी महिमाके लेशको भी कौन जान सकता है? (६) विपुल विस्तारवाले शाकद्वीप और (७) प्रसिद्ध नामवाले पुष्करद्वीपमें भी अनेक भगवद्भक्त हैं। लोकालोक पर्वत, जो टापू अर्थात् द्वीपका स्थान है और जो कंचनघर अर्थात् स्वर्णका घर है, वहाँ भी बहुत-से भगवद्भक्त विराजते हैं। भगवान्‌के जो-जो भक्त जहाँ-जहाँ बसते हैं, उनसे नित्य प्रति मेरा कोई-न-कोई प्रयोजन रहता है। अतः सप्तद्वीपके जो भक्त हैं, वे सब-के-सब मेरे सिरके ताज अर्थात् सिरके मुकुटमणि हैं। इनकी मैं उपेक्षा नहीं कर सकता।