पद ०२२


॥ २२ ॥
बाल बृद्ध नर नारि गोप हौं अर्थी उन पाद रज॥
नंदगोप उपनंद ध्रुव धरानंद महरि जसोदा।
कीरतिदा वृषभानु कुँवरि सहचरि मन मोदा॥
मधुमंगल सुबल सुबाहु भोज अर्जुन श्रीदामा।
मंडलि ग्वाल अनेक श्याम संगी बहु नामा॥
घोष निवासिनि की कृपा सुर नर बाँछित आदि अज।
बाल बृद्ध नर नारि गोप हौं अर्थी उन पाद रज॥

मूलार्थ – नाभाजी कहते हैं कि (१) गोपोंमें श्रेष्ठ श्रीनन्दराज (२) श्रीउपनन्द (३) श्रीध्रुवनन्द (४) श्रीधरानन्द (५) नन्दगोपकी पटरानी महरि यशोदा माता, और कीरतिदा वृषभानु कुँवरि सहचरि मन मोदा अर्थात् (६) श्रीराधाजीकी माँ कीर्तिदा कलावतीजी (७) राधाजीके पिता श्रीवृषभानुजी (८) स्वयं श्रीराधाजी (९) राधाजीकी मनमें प्रसन्न रहने वाली आठ सखियाँ (१०) मधुमङ्गल (११) सुबल (१२) सुबाहु (१३) भोज (१४) अर्जुन (१५) श्रीदामा और इसी प्रकार (१६) भगवान् कृष्णके साथ रहनेवाले अनेक नामवाले अनेक ग्वालोंके मण्डल – ऐसे जिन घोष­निवासियोंकी कृपाको देवता, मनुष्य और किं बहुना आदि अज अर्थात् ब्रह्माजी भी चाहते रहते हैं उन्हीं बाल-वृद्ध गोप नर-नारियोंकी चरण­धूलिका मैं अभ्यर्थी रहूँ।

नाभाजीने इस छन्दमें वृषभानु कुँवरि सहचरि कहा है। राधाजीकी मुख्य आठ सखियाँ प्रसिद्ध हैं। यहाँ ध्यान रखना चाहिये कि जैसे भगवती सीताजीकी आठ सखियाँ प्रसिद्ध हैं – (१) चारुशीला (२) लक्ष्मणा (३) हेमा (४) क्षेमा (५) वरारोहा (६) पद्मगन्धा (७) सुलोचना और (८) सुभगा, उसी प्रकार राधाजीकी भी आठ सखियाँ प्रसिद्ध हैं – (१) ललिता (२) विशाखा (३) चित्रा (४) इन्दुलेखा (५) चम्पकलता (६) रङ्गदेवी (७) सुदेवी और (८) तुङ्गविद्या। इन्हीं आठ सखियोंके आलोकमें राधाजीकी लीलाएँ चलती रहती हैं और इनमें ही भगवान्‌की लीलाके दर्शनसे मनमें आनन्द रहता है।