पद ०२१


॥ २१ ॥
ब्रज बड़े गोप पर्जन्य के सुत नीके नव नंद॥
धरानंद ध्रुवनंद तृतिय उपनंद सुनागर।
चतुर्थ तहाँ अभिनंद नंद सुखसिंधु उजागर॥
सुठि सुनंद पशुपाल निर्मल निश्चय अभिनंदन।
कर्मा धर्मानंद अनुज बल्लभ जगबंदन॥
आसपास वा बगर के जहँ बिहरत पसुप स्वछंद।
ब्रज बड़े गोप पर्जन्य के सुत नीके नव नंद॥

मूलार्थ – व्रजमें श्रेष्ठ गोप व्रजेन्द्र पर्जन्यके नवनन्द नामक पुत्र बड़े प्यारे हैं। इनमेंसे (१) ध्रुवनन्द (२) धरानन्द (३) तृतीय अत्यन्त चतुर उपनन्द (४) चतुर्थ अभिनन्द (५) नन्द जो सुखके सागर हैं और उजागर भी हैं (६) सुनन्द जो अत्यन्त पवित्र हैं और जो पशुओंका पालन करते हैं, जिनका निश्चय और अभिनन्दन अत्यन्त निर्मल है (७) कर्मानन्द (८) धर्मानन्द और (९) जगत्‌के वन्दनीय सबसे छोटे भाई वल्लभ। ये सब गोप उस व्रजके आस-पास रहते हैं जहाँ स्वच्छन्द रूपसे गोप विचरण करते रहते हैं। व्रजमें बड़े गोप पर्जन्यजीके नौ पुत्र बहुत प्रसिद्ध हैं।