॥ १८ ॥
दस आठ स्मृति जिन उच्चरी तिन पद सरसिज भाल मो॥
मनुस्मृति आत्रेय वैष्णवी हारीतक जामी।
जाग्यबल्क्य अंगिरा शनैश्चर सांवर्तक नामी॥
कात्यायनि शांडिल्य गौतमी बासिष्ठी दाषी।
सुरगुरु शातातापि पराशर क्रतु मुनि भाषी॥
आशा पास उदारधी परलोक लोक साधन सो।
दस आठ स्मृति जिन उच्चरी तिन पद सरसिज भाल मो॥
मूलार्थ – अठारह स्मृतियोंका जिन आचार्योंने उच्चारण किया है, ऐसे (१) मनु (२) अत्रि (३) विष्णु (४) हारीत (५) यम (६) याज्ञवल्क्य (७) अङ्गिरा (८) शनैश्चर (९) सांवर्तक (१०) कात्यायन (११) शाण्डिल्य (१२) गौतम (१३) वसिष्ठ (१४) दक्ष (१५) बृहस्पति (१६) शातातप (१७) पराशर और (१८) क्रतु – इन आचार्योंके चरणकमल मेरे मस्तकपर सतत विराजमान रहें। ये स्मृतियाँ हैं – मनुस्मृति, अत्रिस्मृति, वैष्णवी स्मृति, हारीतकस्मृति, यामी स्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, अङ्गिरःस्मृति, शनैश्चरस्मृति, सांवर्तकस्मृति, कात्यायनस्मृति, शाण्डिल्यस्मृति, गौतमस्मृति, वसिष्ठस्मृति, दक्षस्मृति, बृहस्पतिस्मृति, शातातपस्मृति, पराशरस्मृति, और क्रतुस्मृति। ये आचार्य ही हमारे जीवनकी आशा हैं, ये उदारबुद्धि वाले हैं, और ये परलोक और लोक दोनोंमें हमारे लिये साधनस्वरूप हैं।