॥ ८ ॥
मो चित्तबृत्ति नित तहँ रहो जहँ नारायण पारषद॥
बिष्वक्सेन जय बिजय प्रबल बल मंगलकारी।
नंद सुनंद सुभद्र भद्र जग आमयहारी॥
चंड प्रचंड बिनीत कुमुद कुमुदाच्छ करुणालय।
शील सुशील सुषेण भाव भक्तन प्रतिपालय॥
लक्ष्मीपति प्रीणन प्रबीन भजनानँद भक्तन सुहृद।
मो चित्तबृत्ति नित तहँ रहो जहँ नारायण पारषद॥
मूलार्थ – अर्थात् मेरी चित्तवृत्ति वहींपर निरन्तर निवास करे, जहाँ भगवान् श्रीमन्नारायण विष्णुजीके सोलह पार्षद विराजते रहते हैं। उनमेंसे श्रीविष्वक्सेन, श्रीजय, श्रीविजय, श्रीप्रबल और श्रीबल – ये मङ्गलकारी पार्षद हैं। श्रीनन्द, श्रीसुनन्द, श्रीसुभद्र और श्रीभद्र – ये जगत्के आमय अर्थात् रोगोंको हरने वाले हैं। श्रीचण्ड, श्रीप्रचण्ड, श्रीकुमुद और श्रीकुमुदाक्ष – ये विनम्र हैं और करुणाके घर हैं। श्रीशील, श्रीसुशील और श्रीसुषेण – ये भावसे भगवद्भजन करने वाले भक्तोंका प्रतिपालन करते रहते हैं। इस प्रकार (१) विष्वक्सेन (२) जय (३) विजय (४) प्रबल (५) बल (६) नन्द (७) सुनन्द (८) सुभद्र (९) भद्र (१०) चण्ड (११) प्रचण्ड (१२) कुमुद (१३) कुमुदाक्ष (१४) शील (१५) सुशील (१६) सुषेण – ये सोलहों पार्षद लक्ष्मीजीके पति भगवान् नारायणके प्रीणन अर्थात् उनको प्रसन्न करनेमें कुशल हैं, निरन्तर भगवान्को प्रसन्न करते रहते हैं, और भजनमें आनन्द लेनेवाले भक्तोंके सुहृद् हैं। ऐसे सोलहों नारायणपार्षद जहाँ विराज रहे हों, वहाँ मेरी चित्तवृत्ति निरन्तर निवास करती रहे।
विष्वक्सेन प्रथम आचार्य हैं और भगवान्के प्रथम पार्षद हैं। जय और विजय – ये भगवान्के प्यारे द्वारपाल हैं, जिनके लिये कहा जाता है –
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥
(मा. १.१२२.४)
यहाँ एक बात विशेष ध्यान देनेकी है, वह यह कि ये पार्षद कभी भी भगवान्से दूर नहीं होते। जय-विजय भी एक रूपमें सनकादिका शाप स्वीकार करके प्रथम जन्ममें हिरण्यकशिपु-हिरण्याक्ष, द्वितीय जन्ममें रावण-कुम्भकर्ण और तृतीय जन्ममें शिशुपाल-दन्तवक्रके रूपमें उपस्थित रहे। पर दूसरे रूपमें वे निरन्तर भगवान्की सेवामें ही रहे, वे कभी सेवासे दूर नहीं होते। इसलिये विष्वक्सेन, जय, विजय, प्रबल और बल – ये सदैव मङ्गल ही करते रहते हैं। नन्द, सुनन्द, सुभद्र और भद्र – ये चारों जगत्के काम, क्रोध, लोभ, मोहसे उत्पन्न आमय अर्थात् रोगोंको दूर करते रहते हैं। चण्ड और प्रचण्ड नामसे भयंकर प्रतीत होते हैं, पर स्वभावसे बहुत विनीत हैं। कुमुद और कुमुदाक्ष – ये करुणाके आगार हैं। शील, सुशील और सुषेण भावुक भक्तोंका निरन्तर प्रतिपालन करते रहते हैं।
अब नाभाजी हरिवल्लभोंसे प्रार्थना कर रहे हैं –