समरपन


shachidevi-mishra

समरपन

नवमास परिजन्त गरभ में राखिउ हमइ कोटि-कोटि सुधासम दुधवा पियायू तूँ। गायी के बछरू जैसे बड़ा किहू पालि पोसि चूमि चाटि चुचुकारि सदा दुलराई तूँ। कबहूँ न किहू रसभंग मनभरा माई गिरिधर लाल कहि सदा गोहरायूं तूँ। सरगेउ में रहिके हमारी महतारी शची कमठ के छोहरा ज्यों हमइ छोहरायू तूँ॥ १ ॥

गाइ के जनम भरि गीत रामलला जी के तोहइँ उतारियु माई राघव कइ नजरिया। भगति सहित भरि सावन गावत रहेउ झमकि झमकि सीताराम कइ कजरिया। हमरेउ मन में बसाइयु माई जतन से जुगुल रतन सम सीय राम जोरिया गिरिधर तोहरे कराम्बुज में सौंपत बा गीत मंगलायन अवध कै अँजोरिया॥ २॥