दुई चार शब्द


इ ‘अवध कै अँजोरिया’ किताब के प्रकाशन क्षण में हमारे मने में पूज्य गुरु जी क एक भव्य चित्र आवत बा कि

बन्दउँ सन्त समान चित हित अनहित नहि कोउ। अंजलिगत शुभ सुमन जिमि सम सुगन्ध कर दोउ॥

– मानस १-३(क) , श्रीरामचरितमानस, बालकाण्ड का तीसरा (क) दोहा

  इ किताब ‘अवध कै अँजोरिया’ क एक-एक सोहर (गीत) में राघव जी के बचपन क बहुत नीक वरणन वा। पूज्य गुरु जी के परान पिरिय राघव से इहई पराथना बा कि इ ‘अवध कै अँजोरिया’ पूरे संसार क अँजोरिया बनई।

आपकी बिटिया

किरन