चौथी किरन


॥ नमो राघवाय ॥ ॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ चौथी किरन ॥

(गीत एक) धनि-धनि नगरी अजोधिया चैत सुदी नौमी धनि हो। धनि मंगल दिन दुपहरिया जबै राम प्रगटेनि हो॥ ४-१-१ ॥ धनि-धनि कौसिला क भवन सकल सुख सागर हो। जहाँ रामजी के संग तीनौं भाई समान दिने प्रगटेनि हो॥ ४-१-२ ॥ आई रहीं देखैं कै नहावन रामजी क दुनौं माता हो। तेहिं छन देबि कैकई सुमित्रा तनय तीन प्रगटिनी हो॥ ४-१-३ ॥ कैकई से प्रगटेनि भरत भैया राम परिछाहीं जैसी हो। देबि सुमित्रा के जुगल कुमार लखन अरु शत्रुहन हो॥ ४-१-४ ॥ तीनौं रानीं पुत्रवती बनि गईं कोखिया जुड़ाइ गईं हो। राजा दशरथ चारि पूत पाएनि मनहुँ पुरुषारथ हो॥ ४-१-५ ॥ बाजे लागैं अवध बधाव गगन बाजे दुंदुभी हो। बरषैं सुरगन सुरतरु फूल तीनों लोक सोहर हो॥ ४-१-६ ॥ रानी दीहिं अन-धन सोनवाँ राजा मनि-मानिक हो। पाए गिरिधर भगति के नेग बधाई अब गाएँनि हो॥ ४-१-७ ॥

(गीत दो) बधैया बाजे आँगने में। आजु अवधपुर राघव प्रगटे लोग मगन अनुरागने में॥ ४-२-१ ॥ राम भरत अरु लखन शत्रुहन। सोहत कंचन पालने में बधैया बाजे आँगने में॥ ४-२-२ ॥ कौसल्या कैकई सुमित्रा। प्रमुदित मंगल साजने में बधैया बाजे आँगने में॥ ४-२-३ ॥ नाचहिं गावहिं अवध लुगाई। मंजुल मंगल बाजने में बधैया बाजे आँगने में॥ ४-२-४ ॥ राजा दशरथ रतन लुटावैं। नहिं कोउ लाजे माँगने में बधैया बाजे आँगने में॥ ४-२-५ ॥ गिरिधर राम भगति बर माँगत। गीत नवल रस पागने में बधैया बाजे आँगने में॥ ४-२-६ ॥

(गीत तीन) प्रगट भए चारों भैया अवध बाजे घर-घर बधैया॥ ४-३-१ ॥ चैत शुक्ल नौमी दिन मंगल अभिजित नखत सुखदैया॥ ४-३-२ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। पाँच सुभग ग्रह उच्च परे हैं जोग लगन समुदैया॥ ४-३-३ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। कौसल्या कैकई सुमित्रा मोद मगन तीनों मैया॥ ४-३-४ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। श्याम गौर सुंदर दोउ जोरी संत जन मन के हरैया॥ ४-३-५ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। राजा लुटावैं अन धन सोनवाँ रानी लुटावैं धेनु गैया॥ ४-३-६ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। बाजहिं ढोल निसान पखाउज सुभग शंख शहनैया॥ ४-३-७ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। नाचहिं गावहिं प्रेम मुदित मन अवध के लोग लुगैया॥ ४-३-८ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। बेद मंत्र गुरु बसिष्ठ उचारैं बंदी बिरुद बचैया॥ ४-३-९ ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया। गिरिधर मुदित बधाई गावतदेहु भगति रघुरैया॥ ४-३-१० ॥ अवध बाजे घर-घर बधैया।

(गीत चार) धनि-धनि अवध अँजोरिया चमाचम चमकै हो। जहाँ चारि-चारि चंदा आजु प्रगटे नृपति के आँगन सोहैं हो॥ ४-४-१ ॥ रामलला कौसिला के कोख नवल मेघ सुंदर हो। वैसे कैकई के भरत कुमार मनहुँ राम परिछाहीं हो॥ ४-४-२ ॥ देबि सुमित्रा के प्रगट भए दुइ सुत सुंदर हो। दोउ अनुपम गौर शरीर मदन-मन मोहन हो॥ ४-४-३ ॥ तीनों रानी एकहिं भवन सोहैं चारि-चारि सुत लिए हो। जैसे वेदत्रयी लिए चारि सुफल सकल जन रंजनि हो॥ ४-४-४ ॥ राजा दशरथ भे निहाल निरखि चारि-चारि चंदा हो। गावैं गिरिधर सोहर गीतपरम सुख पावहिं हो॥ ४-४-५ ॥

(गीत पाँच) प्रगट भए रघुरैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-१ ॥ एक ही दिन एक ही भवन में। प्रगटे चारों भैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-२ ॥ चैत शुक्ल नौमी दिन मंगल। अभिजित मुहूरत सुहैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-३ ॥ नखत पुनर्बसु करक लगन है। बार जोग सुखदैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-४ ॥ मेष के भानु मकर के मंगल। तुला शनिश्चर रैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-५ ॥ करक बृहस्पति मीन के भुगु सुत। पाँचों ग्रह उच्च शुभदैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-६ ॥ राम भरत अरु लखन शत्रुहन। चारु चरित चारों भैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-७ ॥ जातकर्म चारिहुँ कर एक संग। करत मुदित रिषिरैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-८ ॥ बाजहिं ढोल दुंदुभी पखाउज। सरस शंख शहनैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-९ ॥ नाचहिं गावहिं लोग लुगाई। तन मन सुधि बिसरैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-१० ॥ राजा लुटावैं अन धन सोनवाँ। काम सुरभि तीनों मैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-११ ॥ उमगि पर्‌यो आनँद लोक तिहुँ। हरष अवध न समैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-१२ ॥ गिरिधर मुदित बधाई गावत। देहु भगत सुरसैया अवधपुर बाजे बधैया॥ ४-५-१३ ॥

(गीत छ:) मिलहु न सखिया सहेलरि मिलि-जुलि चालहू हो। सखि आवइ चलि दशरथ भवन जहाँ चारि लाल भएँ हो॥ ४-६-१ ॥ कौसिला के प्रगटे हैं राम भरत रानी कैकई के हो। सखी सुमित्रा के लछिमन शत्रुहन तीनों रानी पुत्रवती हो॥ ४-६-२ ॥ चारु लाला कौसिला के भवन में एक संग राजत हो। जैसे दिनकर मंडल में घन नभ चंपा दुइ भ्राजत हो॥ ४-६-३ ॥ करि जातकरम सुहावन गृरु गृह गमनेउ हो। गिरिधर राम जन्म मंजुल महोत्सव सोहर में गावत हो॥ ४-६-४ ॥

(गीत सात) गाओ-गाओ सखि मंगलचार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-१ ॥ धनि-धनि चैत सुदि नौमी सुहाई। धनि अभिजित मुहूरत सुखदाई। धनि पुनर्बसु धनि भौमवार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-२ ॥ धनि-धनि तिहुँकाल अवध नगरिया। धनि-धनि सरजू अमृत कै गगरिया। धनि कोसलपुर सुखद्वार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-३ ॥ घर-घर मंगल बाजे बजाओ। द्वार पे बंदनवार सजाओ। सजो भरि-भरि मंगल थार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-४ ॥ परमानंद मगन राजा दशरथ। पूरे मंजुल ललित मनोरथ। एक साथ आए चारि कुमार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-५ ॥ रामलला भरि नयन निहारो। इनकी छबि पर सर्बस वारो। कबि गिरिधर गयो बलिहार अवध प्रगटे रामलला॥ ४-७-६ ॥

(गीत आठ) अवध की छोटी-बड़ी नारीसुवासिनी जठेरिनी हो। सजि सोरहो शृंगार सब सुंदरि कौसल्या घरे चली आवइ हो॥ ४-८-१ ॥ चैत सुदी चतुर्दशी आई अँजोरिया सुहाई बाटे हो। आजु रामलला छठीया पुजाय नृपति घरे जगरन हो॥ ४-८-२ ॥ सुनि के ढिंढोरा सब नारि कौसल्या घरे पहुँचिनि हो। छठि रामजी की बिधिवत पूजि करन लगीं जगरन हो॥ ४-८-३ ॥ गनपति शिव दुर्गा भानु औ विष्णु जी कै शक्ति सब हो। धरि सुंदर नारी बर वेश अवधपुरी पहुँचिनि हो॥ ४-८-४ ॥ अवध पुरिहुँ धनि सुंदरि नारि बर आकृति हो। मिलि छओ जनी रामलला छठी पूजि गावैं लागीं सोहर हो॥ ४-८-५ ॥ गिरिधर स्वामी चारिउ ललन निहारि तृन तोरहीं हो। गावैं सरस सोहर बर नारि पाँचों सुर निहोरहिं हो॥ ४-८-६ ॥

(गीत नौ) बोलीं गणपति मय शक्ति सुनहु सब भामिनी हो। आनु रामजी की छठी क महोत्सव करि लेहु जगरन हो॥ ४-९-१ ॥ बिप्र बोलि बेद के बँचावहु चौक पुरावहु हो। पूजई ग्राम देबी-देवता औ डीहराजा सुरभी दुहवाहु हो॥ ४-९-२ ॥ सकल विघन कर नाशक गनप बिनायक हो। हम नित जपि रामजी के नाम कृतारथ होइथ हो॥ ४-९-३ ॥ जो कोउ रामजी के सुमिरै गुनगन गावहिं हो। रघुनाथ जी की करुणा से बिघन पयोधि पार पावहिं हो॥ ४-९-४ ॥ रामलला अजर-अमर होइके अवध राज करिहैं हो। गिरिधर बंदी बनि बिरुद सुनइहैं भक्ति बर पइहई हो॥ ४-९-५ ॥

(गीत दस) शिव शक्ति बोलीं हँसि पुलकित सुनो सब सुंदरि हो। आजु एक छन नींद नहिं लेहु करहु सब जगरन हो॥ ४-१०-१ ॥ आजु रघुनाथ जी की छठी आई छिटकि अँजोरिया रही हो। लखि राघवजी क मुखचन्द्र लोचन चकोर सब कीजिए हो॥ ४-१०-२ ॥ जो रहैं साकेत बिहारी भगत भयहारी हरि हो। दशरथ कौसिला के भगति के बश होइ बने आज बालक हो॥ ४-१०-३ ॥ हमहुँ निरंतर सप्रेम श्रीरामनाम जपि-जपि हो। काशीपुरी माँहिं मरन से मुकुति जीवन के सदैव देई हो॥ ४-१०-४ ॥ रामनाम जप के प्रभाव से बिषहुँ पी के नाहीं मरे हो। मोर मृत्युंजय परिगा सुनाम सकल जग जानत हो॥ ४-१०-५ ॥ रामनाम जपि राम सुमिरि के रामपद सेई के हो। आजु छठी राति जगरन करिके गिरिधर सुख पावहु हो॥ ४-१०-६ ॥

(गीत ग्यारह) दुर्गा देवी सोहर कढ़ावैं सुनु पुर सुंदरि हो। आजु रामलला छठिया की राति करहु सब जगरन हो॥ ४-११-१ ॥ प्रभु पद प्रेम रसपान करि नाचि गाई जागहु हो। भवसागर के पार उतरन हित भक्ति नाव माँगहु हो॥ ४-११-२ ॥ हम दुर्गाहूँ रामजी की गृहिणी के अंश से प्रगट होइके हो। आजु अग-जग करिके निहाल बिमल जस पाइ गए हो॥ ४-११-३ ॥ जागहु-जागहु सब सुंदरि आँखि न झँपावहु हो। हमरि अंशिनी के स्वामी केरि छठी में प्रमाद सब त्यागहु हो॥ ४-११-४ ॥ जिनकी भृकुटी क लखि के बिलास प्रलय उतपति पालन हो। उनके स्वामी प्रभु राम आज प्रगटेनि उनहिं कै छठी शुभ हो॥ ४-११-५ ॥ हम दुर्गा खप्पर खडग लेके बिघन भगाइ देइ हो। रामलला जियें बरिस करोर इहै बरदान कहि हो॥ ४-११-६ ॥ गिरिधर प्रभु कर सोहर भगति से गावहु हो। चारिउ भाईन के कृपा के प्रसाद बिषदवा मिटावहु हो॥ ४-११-७ ॥

(गीत बारह) सुरुज नरायन कै शक्ति कहैं सबके नयनाँ खोलि-खोलि हो। हम एक छन सोवै नहिं देब चलहु सब जागहु हो॥ ४-१२-१ ॥ धनि-धनि भगिया हमारि औ धनि मोर बंश बाटै हो। जहाँ प्रगटेनि पूरन ब्रह्म बालक बनि अनुपम हो॥ ४-१२-२ ॥ ब्यापक बने हैं आजु ब्याप्य निरंजनहुँ सांजन भे हो। आजु निरगुन सगुन साकार मनुज तनु धारेनि हो॥ ४-१२-३ ॥ बिगत बिनोदहुँ बिनोद करैं कौसिला के गोद बैठि हो। आजु अजहुँ अज के भए नाति जनम लेके अद्भुत हो॥ ४-१२-४ ॥ सकल प्रानिन की सुअँखियन बैठि हम निरखब हो। रघुनंदन कै अनुपम शोभा इहै बड़ा लाभ मिला हो॥ ४-१२-५ ॥ जागु-जागु अवध कै भामिनी छठिया कै जामिनी हो। गाउ गिरिधर प्रभुकर सोहर सब दिन नोहर हो॥ ४-१२-६ ॥

(गीत तेरह) बोली हरि शक्ति हिय हरषि के हरि हरि हरि कहि हो। आजु रामजी के छठीं के सुरजनी सजनी सब जागहु हो॥ ४-१३-१ ॥ देखु चैत चौदसी अँजोरिया छिटकि रही चहुँ दिशि हो। सजी अवध नगरी जैसी दुलहिनि आनँद उमँगि निशि हो॥ ४-१३-२ ॥ रामचन्द्र हमरो अवतारी बिहारी अवध कर हो। आजु उनकर छठी शुभ राति सुंदरि सब जागहु हो॥ ४-१३-३ ॥ हमहुँ रवनवाँ से भयभीत सागर में छिपि रहे हो। अब हमरो बिपति सब नशिहैं सुख दिन अइहैं हो॥ ४-१३-४ ॥ कोटि-कोटि बार खिसियाइ हम चक्र से प्रहार कीहा हो। तबौ कटी नहिं रावन कै बाँह निसान केवल बनि रहा हो॥ ४-१३-५ ॥ अब रामलला धनु तानि कठिन शर मरिहैं हो। जैसे कमल क नलिया प्रयास बिनु रावन भुजा कटिहैं हो॥ ४-१३-६ ॥ काटि-काटि रावन क मथवा सनाथ हमके करिहैं हो। गिरिधर सुमिरि-सुमिरि राम कौतुक सोहर गैहैं हो॥ ४-१३-७ ॥

(गीत चौदह) बोली श्री अजोध्या मुसुकाई के सुनइ सब रानी गन हो। सुनइ बारिनि और पनिहारिन सकल सुबासिनी हो॥ ४-१४-१ ॥ आजु चारिउँ लाला जी की छठी आई चैत चतुर्दशी आई हो। चलइ हमरे सहित नाचइ गावइ मुदित करइ जगरन हो॥ ४-१४-२ ॥ ऐनहीं कइ करै अगवानी हमहुँ पहिले आइ गए हो। त्रेताजुग के आरंभ दिन देखि उतरि आए सरगे से हो॥ ४-१४-३ ॥ कार्तिक शुकल पक्ष नौमी अछय नौमी सब कहैं हो। उहीं दिन हम सरजू के सहित कोसल देश पगु धारा हो॥ ४-१४-४ ॥ आजु हम होइ गए सनाथ निरखि रघुनाथ पद हो। गावइ गिरिधर प्रभु कर सोहर छठी राति जागि-जागि हो॥ ४-१४-५ ॥

(गीत पन्द्रह) बैषाख कृष्ण पक्ष पंचमी मनोहर बरही की तिथि आई राम की। अवध गहागह बाजति बधाई सुषमा सुहाई सुख धाम की॥ ४-१५-१ ॥ नाचहु गावहु मिली जुली गोतिनी मंगल मोद मनाइये। चारिउ भाईन के बरही के सोहर हिलमिली सब हँसी गाइये॥ ४-१५-२ ॥ असही दुसही मरहु मनही मन बैरी न बढ़उ बिषाद हे हो। दशरथ चारि सुवन चिर जीवहु हर गुरु गौरि प्रसाद हो॥ ४-१५-३ ॥ बरही निहारि के रामलला पर तन मन धन सब वारिये। गिरिधर प्रभु उर मंदिर महँ धरि शुभ आरती उतारिये॥ ४-१५-५ ॥ बिमला प्रमुख शक्ति शुचि द्वादश बरही बारह सोहर गावहिं। पाइके मोदक प्रेम मुदित मन जन्म नयन फल पावहिं॥ ४-१५-६ ॥

(गीत सोलह) बिमला बिमल मन राम के निहारि सोहर गावहिं हो। हरि-हरि प्रेम प्रमोद मगन मन पार न पावहि पावहिं हो॥ ४-१६-१ ॥ सुनु-सुनु अवध लुगाई सब राम ब्रह्म पूरन हो। इन्हैं मानो जिनि प्राकृति बालक ईश परिपूरन हो॥ ४-१६-२ ॥ बिमल धबल इनकै कीरति चरित बिमल अति हो। इनकर नाम रूप लीला धाम बिमल सकल श्रुति गावहिं हो॥ ४-१६-३ ॥ इनसे भानुवंश होइगा बिमल बिमल माता-पिता-गुरु हो। इनकी चरित से अग जग बिमल सतत होत रहिहैं हो॥ ४-१६-४ ॥ बिमल स्वरूप-बिमल बानी बिमल मुख इंदु हास हो। इनकर बिमल सुभाव-प्रभाव बिमल सब गुन-गाथा हो॥ ४-१६-५ ॥ इनकर जे चरन सरोज ध्याइ रामनाम जपिहैं हो। ओऊ कोटि-कोटि कुल परिवार समेत बिमल होइहैं हो॥ ४-१६-६ ॥ यह कहि रामलला बदन में बिमला समाइ गईं हो। गिरिधर प्रभु गुन सोहर गाइ परम सुख पाईं गईं हो॥ ४-१६-७ ॥

(गीत सत्तरह) बोलीं उत्कर्षिणी राघवजी के देखि उत्कर्ष अति हो। आजु हमरउ सुफल होइगा नाम बिलोकि उत्कर्ष शुभं हो॥ ४-१७-१ ॥ अग-जग जे-जे बड़ा बाटेनि बिधि हरि-हर आदि हो। सब के रामजी से मिली बा बड़ाई सुजस कांति बैभव हो॥ ४-१७-२ ॥ रामजी क रामनाम जपि के जगत के पतितगण हो। पावैं अनायास सब उत्कर्ष बिरुद कल-कीरति हो॥ ४-१७-३ ॥ मरा-मरा कहि बालमीकि तरे गनिका तोता पढ़ाई हो। अब रिषि नारी ब्याध गीध कपि भालु निषाचर तरिहैं हो॥ ४-१७-४ ॥ यह कहि राम के बदन महँ उत्कर्षिणी चली गईं हो। गिरिधर स्वामी क सुनि उत्करष कौसल्या निहाल भईं हो॥ ४-१७-५ ॥

(गीत अट्ठारह) बोलीं ज्ञाना शक्ति धरी धीरज नागरी सुनहु सब हो। समवाय सम्बन्ध से नित्य ज्ञान राम में निरंतर विराजत हो॥ ४-१८-१ ॥ रामलला नित्य ज्ञानवान स्वरूप उनकर ज्ञानमय हो। कभौं माया से न होइ परिछिन्न अविधाहुँ से दूर रहै हो॥ ४-१८-२ ॥ बिम्ब प्रतिबिम्ब उहाँ नाहिन कोई उपाधि नहीं हो। राम ज्ञान के सदैव अधिकरन इहै गौतम गावहिं हो॥ ४-१८-३ ॥ श्रुति सब कहैं इहै बात अखंड ज्ञानमय राम हो। सब विधा सब षास्त्र सब धरम एकै राम जानत हो॥ ४-१८-४ ॥ इनमें न कबहुँ अज्ञान न माया-मोह ब्यापै हो। लखि रामलला भृकुटि बिलास मायाहु थर-थर काँपैं हो॥ ४-१८-५ ॥ ज्ञानगम्य राम के बिचारि चरन कंज ध्यावहु हो। तजि कपट सगुन गुन गाइ भव से पार पावहु हो॥ ४-१८-६ ॥ ज्ञानाशक्ति कहि राम ज्ञान गुण राम में प्रबेश कीहिं हो। गिरिधर स्वामी के सुनि के प्रभाव अरुंधती मगन भईं हो॥ ४-१८-७ ॥

(गीत उन्नीस) बोलीं योगाशक्ति लखि जोग संजोग शुभ पाइ के हो। सजनी रामलला योग के निधान महायोगी योगनिधि हो॥ ४-१९-१ ॥ सब योग सिद्धि योग बिधि सब इनमें बिराजहिं हो। लखि रामलला रुख अघटित सब घटना के साजहिं हो॥ ४-१९-२ ॥ कौसिला के अद्भुत रूप प्रभु योग से देखइहैं हो। जोगबल से अवध नर-नारिन मिलि सुख देइहैं हो॥ ४-१९-३ ॥ पदुम अठारह जूथपति सन्मुख जैइहैं हो। जोगबल से अनेक देह धरि राम बिपति नसइहैं हो॥ ४-१९-४ ॥ कहि योगाशक्ति राम मुख-कंज ओस से बिलीन भईं हो। सुनि गिरिधर प्रभु जोग प्रभाव मुदित सब नारी भईं हो॥ ४-१९-५ ॥

(गीत बीस) बोलीं क्रियाशक्ति करि सत्क्रिया आज मोर जन्म धन्य हो। सब क्रिया कुल प्रेरनहार राघवजी प्रगट भएँ हो॥ ४-२०-१ ॥ बैदिक बिधान सब करिहैं अशुभ निवरिहैं हो। करिके नित्य अरु निमित्त सुकरम धरम रक्षा करिहैं हो॥ ४-२०-२ ॥ राम के करम सुनि अग जग बड़भागी होइहैं हो। करि जीवन में राम अनुकरन बिपत्ति सब खोइहैं हो॥ ४-२०-३ ॥ मातु-पिता गुरुतिय गुरुजन पुरजन परिजन हो। देखि-देखि राम कर्म अनेक सुकरमठ होइहैं हो॥ ४-२०-४ ॥ यह कहि क्रियाशक्ति राममुख कमल में चली गईं हो। सुनि गिरिधर प्रभु कर्मठ लीला सुमित्रा जी मुदित भईं हो॥ ४-२०-५ ॥

(गीत इक्कीस) सत्या कहैं हृदय हुलास निहारि सत्यवादी प्रभु हो। अब सत्य कै बिजय बड़ि होइहैं असत्य कुम्हिलाई जइहईं हो॥ ४-२१-१ ॥ रामलला सत्यसंध सत्यब्रत सत्य सुधरम-रत हो। सत्य काम सत्य संकलप मूरति सत्यबादी दृढ़ब्रत हो॥ ४-२१-२ ॥ दशरथ राजा के जतन करि जाई घोर कानन हो। रामलला असत्य से बचइहैं बिमल पइहईं हो॥ ४-२१-३ ॥ सपन्यौं न झूठि प्रभु बोलिहैं मरम सत्य खोलिहैं हो। सत्यबादी हरिश्चन्द्रहूँ के पीछे छोड़ि दिब्य जस पइहईं हो॥ ४-२१-४ ॥ सत्य लागि संकट अनेक सहि सत्यब्रत पलिहैं हो। करि रामलला सत्य प्रतिज्ञा जगत पूज्य बनिहईं हो॥ ४-२१-५ ॥ यह कहि सत्या शक्ति प्रभुमुख कमल में लीन भईं हो। सुनि गिरिधर प्रभु सत्य प्रभाव मुदित राजा दशरथ हो॥ ४-२१-६ ॥

(गीत बाईस) बोलीं तब प्रहवी शक्ति गदगद सुनइ राजा दशरथ हो। तोहरे ललना के जगत अधीन बिचित्र गुन जोग बना हो॥ ४-२२-१ ॥ जड़ अरु चेतन सकल जग इनके अधीन रहै हो। इनकी अँखिया क रुख देखि माया नटी जैसी नाचै हो॥ ४-२२-२ ॥ ब्रह्मा बिष्णु शंकर प्रमुख सुर असुर भयंकर हो। यक्ष किन्नर गन्धर्व नर नाग श्रीराम के अधीन रहैं हो॥ ४-२२-३ ॥ जीवात्मा जितने जगत माहिं बंद्ध मुक्त भेद संग हो। सब रहैं रामलला के अधीन सतत बने सेवक हो॥ ४-२२-४ ॥ प्रकृतिहुँ राम के अधीन रहे जग परिणामिनी हो। माया जीव काल करम सुभाव रमैया के अधीन रहैं हो॥ ४-२२-५ ॥ ते ऊ राम तोहरे अधीन भजन क प्रभाव इहै हो। कहि प्रहवी शक्ति गिरिधर प्रभु मुख शशि में समाइ गईं हो॥ ४-२२-६ ॥

(गीत तेईस) बोलीं ईशाना शक्ति ईश के निहारि राजा गोद महँ हो। राजा धनि-धनि भाग तोहार ईशौ के ईश पाय गय हो॥ ४-२३-१ ॥ इहै अहैं अग जगदीश जीवौ के ऐइ शासक हो। सेये सति भाय चरन सरोज महाबिपति नाशक हो॥ ४-२३-२ ॥ इनके भय वायु नित्य बहै तपै भानु इनके भय हो। इनके भय से अगिनी सब दहै इन्द्रहुँ बरसै इनके भय हो॥ ४-२३-३ ॥ जे के सब कहैं विकराल दुरंत दुरतिक्रम हो। उहऊ काल रामलला से बहुत डरै थरथर काँपै हो॥ ४-२३-४ ॥ रामलला परम ईशान तोहार पूत बनि गएँ हो। कहि ईशाना समाइ गईं हरिमुख गिरिधर अति हरषित हो ॥ ४-२३-५ ॥

(गीत चौबीस) बोली बोलीं अनुग्रहा शक्ति अनुग्रह करि सुनइ रानी नरपति हो। रामलला अनुग्रह रूप अनुग्रह विग्रह हो॥ ४-२४-१ ॥ अनुग्रंह करिके तोहरे घर रामलला आइ गएँ हो। करि अनुग्रह मुनि मख रखिहैं अहल्या के उधरिहैं हो॥ ४-२४-२ ॥ अनुग्रह करि मिथिला पधारि तोरि के पिनाक धनु हो। पाइ अनुग्रहमयी सीता जानकी अवधपुर अइहैं हो॥ ४-२४-३ ॥ करि दीनजन पे अनुग्रह बिपिन सिधरिहैं हो। गीध शबरी मारुति सुगीवँ विभीषण सवँरिहैं हो॥ ४-२४-४ ॥ अनुग्रह करि सिंधु सेतु बाँधि खलन सँघरिहैं हो। बैठि पुष्पक विमान आइ अवध अचल राज करिहैं हो॥ ४-२४-५ ॥ यह कहि अनुग्रहा शक्ति समाइ गईं राममुख हो। अब तो गिरिधर प्रभु रघुनाथ अनुग्रह सुधा बरसिहैं हो॥ ४-२४-६ ॥

(गीत पच्चीस) बोलीं संधानी शक्ति रामलला गुन अनुसंधान करि हो। रामलला स्वयं सत्यसंधान बिछुरे जन जोरिहैं हो॥ ४-२५-१ ॥ मिथिला अवध में बिबाह मिस संधि करिहैं हो। रिषि गौतम से अहल्या मिलाइ परम सुख देइहैं हो॥ ४-२५-२ ॥ तोरि शंभु धनु शैव-वैष्णव समन्वय करइहैं हो। सीता शक्ति पाइ शक्ति के उपासकन भगत बनइहैं हो॥ ४-२५-३ ॥ बन जाइ कोल औ किरातन प्रभु अपनइहैं हो। पाइ हनुमान परम सुसेवक अति सुख पैइहैं हो॥ ४-२५-४ ॥ निशिचर कपि भालु मीत करि अवध में अइहैं हो। करि अचल अवध रामराज विषमता मिटइहैं हो॥ ४-२५-५ ॥ संधानी सुनाई हरिचरित प्रभु के मुख माँझ गईं हो। सुनि गिरिधर प्रभु शुभ चरित तिनहु माता प्रमुदित हो॥ ४-२५-६ ॥

(गीत छब्बीस) बोलीं शक्ति संबित्‌ सुन सखी सब रामदिब्य ज्ञानमय हो। ए तो घट-घट अंतरजामी सबै की बात जानत हो॥ ४-२६-१ ॥ चींटीयौ की बात प्रभु सुनत करत इच्छा पूरन हो। ए तो दीनानाथ अनाथ के नाथ जगत जश गावत हो॥ ४-२६-२ ॥ अवध जनन के मरम जानि रुचि प्रभु रखिहैं हो। ए तो मिथिलानी नारी के हृदय माँझ सुख से बिरजिहैं हो॥ ४-२६-३ ॥ कोल भिल्ल कपि भालु राक्षसन कै रुचि हरि पलिहैं हो। ए तो शबरी के जूठ बैर खाइके सदैव ही निरंतर सरहिहैं हो॥ ४-२६-४ ॥ यह कहि संबित्‌ समानी मुख लखि सब विस्मित हो। गिरिधर गाइ-गाइ प्रभु गुन गाथ कृतारथ बानी के करैं हो॥ ४-२६-५ ॥

(गीत सत्ताईस) बोलीं आह्लादिनी सुशक्ति तब सुनो सब नर-नारी हो। रामलला प्रभु परमानंद पयोनिधि मनोहर हो॥ ४-२८-१ ॥ इनके हृदय में नित्य नूतन आनंद बिराजत हो। इहाँ दुख शोक भय के न लेश बिपति सब भाजत हो॥ ४-२८-२ ॥ हम अह्लादिनी सदैव प्रिया रामजी के सीता रानी हो। हम भूमि से प्रगट होइके अउबै पतोहू बनि अवध में हो॥ ४-२८-३ ॥ बड़ी बहूरानी कै सुलीला अवध-आइ करबै हो। बन जाइ करि अगिनि में बास खलन नसउबै हो॥ ४-२८-४ ॥ अवध निवासी बड़भागी सब राम के दरस पाई हो। बारह बरही के सोहर गावहु सब सुख पावहु हो॥ ४-२८-५ ॥ कहि अह्लादिनी प्रभु मुख पदुम में भ्रमरी जथा प्रबिशीं हो। कहैं गिरिधर जय राम ललन बारह बरही सोहर हो॥ ४-२८-६ ॥

(गीत अट्ठाईस) बरही के सोहर गाइ के नारी सुवासिनी हो। करि नेग चार नेहछू नहावन बरही पुरावहिं हो॥ ४-२८-१ ॥ चारेउ ललन नहवाइ विभूषण साजिनि हो। राजा दशरथ गोद पधराइ बधैया पुर बाजिनि हो॥ ४-२८-२ ॥ गंगा जमुना सरजू फुफू बनि तुरत पधारिनि हो। रामलला कै सौरिया के पोति बहुत नेग पाएनि हो॥ ४-२८-३ ॥ कीहेनि बसिष्ठ नामकरण बिधान करि बैदिक हो। राम भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न नाम सुनि नृप हरषिनी हो॥ ४-२८-४ ॥ चारिहु ललन लिए गोद बसिष्ठ मुनि पुलकित हो। कबि गिरिधर उर अभिलाष दरस लागि तरसत हो॥ ४-२८-५ ॥

(गीत उन्तीस) गुरुजी के गोद खिलौना हो कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-१ ॥ नील सरोरुह श्याम सुभग तनु साँवर कुँवर सलोना हो। कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-२ ॥ कुटिल अलक बिधुमुख पर लटकति मनहुँ लरत ललिछोना हो। कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-३ ॥ खंजन नयन निरंजन अंजन दुइ-दुइ कपोल डिठौना हो। कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-४ ॥ राई-लोन उवारो मोरि सजनी लावे जनि कोउ टोना हो। कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-५ ॥ गिरिधर यह छबि लखि हिय हुलसत होइगा जौन रहा होना हो। कहुँ नजरो न लागै॥ ४-२९-६ ॥

(गीत तीस) अस मन होत उठाइ लेउँ कोरवा। उठाइ लेउँ कोरवा लगाइ लेउँ हियरवा॥ ४-३०-१ ॥ कौसिला ललन अति सुंदर सजनी। शोभा लखि तरसे हमार जियरवा॥ ४-३०-२ ॥ अस मन होत उठाइ लेउँ कोरवा। पीत झँगुरिया तन पर शोभित। ओढ़े जनु दामिनी सुख के बदरवा ॥ ४-३०-३ ॥ अस मन होत उठाइ लेउँ कोरवा। भाइन सहित राम शिशु सोहत। नव घन निरखि नचत मन मोरवा॥ ४-३०-४ ॥ अस मन होत उठाइ लेउँ कोरवा। गिरिधर धन्य निरखि यह झाँकि। रामचंद्र मुखचंद्र चकोरवा ॥ ४-३०-५ ॥ अस मन होत उठाइ लेउँ कोरवा।

(गीत इकतीस) राघव खेलैं अँगनाँ कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-१ ॥ सुंदरता सुरबेलि के बिरवा मुनि मन मोहना। कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-२ ॥ दशरथ सुकृति पयोधि से प्रगटे जन चातकघना। कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-३ ॥ रामहिं जननि चुराये अँचरतर जैसे कृपनघना। कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-४ ॥ अंग-अंग लसत बसन शिशु भूषन लसे कंजनयना। कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-५ ॥ रामलला छबि निरखत हुलसत गिरिधर को मना। कौसिला के बारे ललना॥ ४-३१-६ ॥

(गीत बत्तीस) जुग-जुग जागे जग सुजस अँजोरिया अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-१ ॥ राम भरत अरु लखन शत्रुहन मरकत कनक बरन बरजोरिया। अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-२ ॥ अवध नगर नर-नारी प्रमुदित आनंद उमगत कौसल की खुरिया। अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-३ ॥ दषरथ राउ सहित सब रानी एकटक निरखत राम की ओरिया। अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-४ ॥ चूमि-चाटि चुचुकारि दुलारत बारत मनिगन बसन निहोरिया। अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-५ ॥ रामलला गिरिधरहिं बिलोकिय राघव जलज बिलोचन कोरिया। अवध की अँजोरिया॥ ४-३२-६ ॥

॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ चौथी किरन सम्पूरन ॥ ॥ अवध कै अँजोरिया ग्रन्थ पूरन॥