॥ नमो राघवाय ॥ ॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ प्रथम किरन ॥
(गीत एक ) राम अवध चंद सीता अवध कै अँजोरिया। एन कर सुजस चहुँ ओर बा। चौदह भुवनन में इनसे अजोर बा॥ १-१-१ ॥ सीताराम भगवान परब्रह्म पूरन। सदा करैं भगतन के भव-भय चूरन। परस्पर अभिन्न जैसे जल औ लहरिया। जुगल में सनेह नहिं थोर बा॥ १-१-२ ॥ चौदह भुवनन में इनसे अजोर बा॥ नैन के लोभावै मन के भावे यह जोरिया। छबि से लजावै नित बदरा-बिजुरिया। राम सीतावर सीता राम कै बहुरिया। इहै नेह नाता नित ओर बा॥ १-१-३ ॥ चौदह भुवनन में इनसे अजोर बा॥ चराचर जगत क ए बाप-महतरिया। हमैं बदे बाटेनि जैसे कलपतर बलरिया। दूर करैं हमरऊ महामोह अन्हियरिया। कवि गिरिधर चतुर चकोर बा॥ १-१-४ ॥ चौदह भुवनन में इनसे अजोर बा॥
(गीत दो) [शिवजी हनुमान अवतार लेइ बदे तैयार हयैन पार्वती प्रार्थना करत थइन —] हमहूँ चलबै तोहार संगहे बाबा॥ १-२-१ ॥ राघव कर सेवा दुनौं जनें करबैं। सीताराम शोभा नयन यरि निहरबैं। हमहूँ रंगबै तोहार रंग हे बाबा॥ १-२-२ ॥ हमहूँ चलबै तोहार संगहे बाबा॥ दुनौं जने गाँठि जोरि सरजू नहइबै। हँसि-हँसि दूध अउर लावा चढ़इबै। हमहूँ रंचबै तोहार संग हे बाबा॥ १-२-३ ॥ हमहूँ चलबै तोहार संगहे बाबा॥ राघव के गुणगान दुनऊ जनें करबै। रामजी की भगति से जीवन सुधरबै। हमहूँ नचबै तोहार संग हे बाबा॥ १-२-३ ॥ हमहूँ चलबै तोहार संगहे बाबा॥ तूं बनि जा बानर हम बनवई बनरिया। गिरिधर प्रभु भगति कै ओढ़बे चुनरिया। हमहूँ झूमबै तोहार संग हे बाबा॥ १-२-४ ॥ हमहूँ चलबै तोहार संगहे बाबा॥
(गीत तीन) [हनुमान जौ का प्राकट्य—] हनुमनऊँ हमार हनुमनऊँ। तोहरे बश में बाटें राम भगवनऊँ॥ १-३-१ ॥ कंचन बरन चमकै पियरि सरीरिया। इंद्रधनुष जैसन लपकै ललकि लंगूरिया। तू त बाटउ बड़ा बलवनऊँ॥ १-३-२ ॥ हनुमनऊँ हमार हनुमनऊँ॥ केसरी किशोर पवन अंजना के बारे। सीताराम के दुलारे संतन के प्यारे। तू त भक्ति भगवान के भवनऊँ॥ १-३-३ ॥ हनुमनऊँ हमार हनुमनऊँ॥ बाटिका उजारि अक्ष राक्षस सँघारे। तोरि जमकातर कनकपुर जारे। तू त राम नाम धन के निधनऊँ॥ १-३-४ ॥ हनुमनऊँ हमार हनुमनऊँ॥ गिरिधर कै गिरिधर मिटावउ बिपतिया। पहुँचावउ पतितपावन के पास पुतिया। तोहरे ही में लसैं राघव रतनऊँ॥ १-३-५ ॥ हनुमनऊँ हमार हनुमनऊँ॥
(गीत चार) हनुमत जनम पे बधैया करोर हो। तू जुग-जुग जिय भैया केशरी-किसोर हो॥ १-४-१ ॥ तजि के कैलास गिरि रुद्र देव देहिया। बानर सरीर धरई राम के सनेहिया। चारिउँ जुग जगमगाइ सुजस चहुँ ओर हो॥ १-४-२ ॥ तू जुग-जुग जिय भैया केशरी-किसोर हो॥ सीताराम सेवाब्रत बाल ब्रह्मचारी। बानर सरीर में भी रहे निरविकारी। धनी-धनी आंजनेय भक्त सिरमौर हो॥ १-४-३ ॥ तू जुग-जुग जिय भैया केशरी-किसोर हो॥ अक्ष के सँघारि लंका जारि बारि डारे। राजा रामचंद्रजी के कारज सँवारे। रावन के हरे मद कुलिश कठोर हो॥ १-४-४ ॥ तू जुग-जुग जिय भैया केशरी-किसोर हो॥ तोहरे जनमदिन पे कोटिन बधाई। सीताराम प्रानप्रिय भक्त सुखदाई। कृपा दीढि करि हरेउ गिरिधर की ओर हो॥ १-४-५ ॥ तू जुग-जुग जिय भैया केशरी-किसोर हो॥
(गीत पाँच) हमैं सरगउ से अजोध्या सुख खानि लागै। बड़ि बैकुंठउ से राम राजधानी लागै॥ १-५-१ ॥ कार्तिक शुक्ल अछय नौमी तिथि मंगल मूल सुहाई। स्वयं अजोध्या सरजू संग श्री साकेत से आई। सीताराम की करत अगवानी लागै॥ १-५-२ ॥ बड़ि बैकुंठउ से राम राजधानी लागै॥ द्वादश जोजन में आयत विस्तीर्ण तीन योजन में। भूमिभाल भारत की शोभा मोद भरे जन-मन में । राम जन्मभूमि अजोध्या सुहानी लागै॥ १-५-३ ॥ बड़ि बैकुंठउ से राम राजधानी लागै॥ जहाँ भरत लछिमन रिपुहन संग शिशु राघव नित खेलैं। घुटुरुन चलैं बाल लीला मिस जासु धूरि सिर मेलैं। कल्पलता जैसी सब सुखदानी लागै॥ १-५-४ ॥ बड़ि बैकुंठउ से राम राजधानी लागै॥ रामलला के जहाँ दुलारैं नृप संग तीनों मैया। सरजू में छपकोरिया खेलैं जहाँ राम-रघुरइया। गिरिधर प्रेम रस भक्ति की बिधानी लागै॥ १-५-५ ॥ बड़ि बैकुंठउ से राम राजधानी लागै॥
(गीत छ:) [सोहर] भोरवैं नहाइ कौसल्या रानी सरजू मनावैं हो। माता हमरे जो होइहैं होरिलवा तोहिं तब पूजब हो॥ १-६-१ ॥ तूं तो हरि नैन से प्रगट भयू बिरजा कहायू हो। गुरु बसिष्ठ सर के प्रताप सरजू बनि आयू हो॥ १-६-२ ॥ पायँ परि करौं मनुहार मनोरथ पुरवहू हो। मोर बझिनी क नाऊँ मिटाव हो पूत देई घालहू हो॥ १-६-३ ॥ जब मोरे होईहैं होरिलवा उछाह मनाऊब हो। इंद्रलोक से मँगाइके दुंदुभिया किनारे बजवाऊब हो॥ १-६-४ ॥ नंदन बिपिन के कुसुमवाँ से हरवा बनाऊब हो। माता सोरहउ प्रकार से पूजि) तोहईं पहराउब हो॥ १-६-५ ॥ कोटि घट कामधेनु दुधवा त तोंहके चढ़ाउब हो। माता छप्पन भोग लगाउब बाभन जेवाँउब हो॥ १-६-६ ॥ गिरिधर प्रभु शिशु राम के घाट पे लियाउब हो। तोहरि धारा में उन्हैं नहवाऊब सोहर सुनाउब हो॥ १-६-७ ॥
(गीत सात) मचियै बैठि कौशल्या रानी पिया से अरज करईं हो। हो राजा हमरे जो होई है होरिलवा तो अन धन लुटइबे हो॥ १-७-१ ॥ चैत ही की शुक्ल नवमी सकल दिन मंगल हो। लालन टारन भुवन के भार कौसल्या गृह प्रकटइ हो॥ १-७-२ ॥ छोटी-छोटी सिर पें अलकियाँ श्रवण कुण्डल छोटो सो हो। लालन छोटे-छोटे भाल बिराजे तिलक रेखा छोटी-छोटी हो॥ १-७-३ ॥ छोटे-छोटे कमल कपोल डिठौना सोहे छोटो-छोटो हो। लालन छोटी-छोटी सोह बर नासा चिबुक सोहे छोटे-छोटे हो॥ १-७-४ ॥ छोटी-छोटी दुइ-दुइ दतुलिया बिजुरिया जइसन दमकति हो। लालन छोटे-छोटे अधर सलोने निरख मन मोहत हो॥ १-७-५ ॥ छोटे-छोटे कठुला गले में लसे छोटी बनमाला सोहे हो। लालन छोटी सौहैं तन पे झिंगुरिया निरखि जियरा ललचत हो॥ १-७-६ ॥ छोटे-छोटे बिबिध विभूषन जराऊँ जरे छोटे-छोटे हो। लालन छोटी-छोटी कटि पर किंकिनियाँ मधुर रुनझुन बाजत हो॥ १-७-७ ॥ छोटे-छोटे चरन सरोज पेंजनिया सोहे छोटी-छोटी हो। लालन छोटे-छोटे धूरि विधूसर किलकि लाला विभूषित हो॥ १-७-८ ॥ छोटे-छोटे ललित खिलौने पलना ऊपर लटकत हो। लालन छोटे-छोटे पानि सरोजन किलकी पसारत हो॥ १-७-९ ॥ छोटे-छोटे नृपति कुमार छबिली छवि छोटी-छोटी हो। लालन छोटे मन अंगना बीच में गिरिधर छुपावत हो॥ १-७-१० ॥
(गीत आठ) कनक अजिर बीच बैठि कौसल्या रानी सथवाँ सहेली लिये हो। ललना प्रमुदित हृदय कौसल्या रानी राम अन्हवावति हो॥ १-८-१ ॥ रजत मनोहर कुण्डिया मरली जल निर्मल हो। ललना केसर रुचिर सुगन्ध गुलाब जल शोधित हो॥ १-८-२ ॥ कुण्डी बिच राजत राघव निरखि मन ललचल हो। जैसे चन्दा के बीच बदरा चमाचम चमकइल हो॥ १-८-३ ॥ अंग-अंग अँचरनि पोछति बदन अँगोछति हो। ललना मलि-मलि शिशु नहवावई जनम फल पावति हो॥ १-८-४ ॥ साँवरे सुभग सरिरिया रुचिर पानी उद सोहे हो। जैसे नील- कमल पर ओंसिया सकाले झिनि झलकत हो॥ १-८-५ ॥ किलकि-किलकि लाला बिहँसे करनि जल छबकत हो। मानो छीर उदधि में अमिय रस चपरि निसारति हो॥ १-८-६ ॥ मेचक कुटिल अलकियाँ चुवत जल सुन्दर हो। जैसे काम केर भँवर समूह शशिहि नहवावति हो॥ १-८-७ ॥ गुरुतिय सखियाँ सुवासिन्ह मंगल गावति हो। ललना गिरिधर ऐहि निसि गाई जीवन फल पावत हो॥ १-८-८ ॥
(गीत नौ) जैसेई चिरइ चिरोमनि पखनियाँ अंडा सेवहिं हो। वैसेई अँचराँ में राम के चुराई कौसलया रानी जोगवहिं हो॥ १-९-१ ॥ जैसेई गैया आपन बछड़ होंकरि-होंकरि चाटइ हो। वैसेई रानी सुमित्रा रघुनाथ के उमगि-उमगि चूमइ हो॥ १-९-२ ॥ जैसेई आँखि पुतरि पलकिया सकुचि नित जोगवहिं हो। वैसेई कैकेयी लखन राखि गोद निहोरि-निहोरि चितवइ हो॥ १-९-३ ॥ जैसेई जल मछरी व्याकुल सलिल हित ललकइ हो। वैसेई राम निहारि राजा दशरथ ललकि-ललकि देखइ हो॥ १-९-४ ॥ चारिउ जन पाइ चारु चन्दा चकोर जैसन निरखइ हो। ललना गिरिधर गावत सोहर भगिया सराहइ हो॥ १-९-५ ॥
(गीत दस) नगर के कनिया कुमरी किरी आजु आवहिं हो। बहिनी आज मोरे राम के बरहिया तिनहुँ घर सोहर हो॥ १-१०-१ ॥ पहिरेहँ लहँगा चुनरिया मुदित मंगल साजहु हो। बहिनी धर लेहु सीस पे कलसवा हरिदि दूबी हरियर हो॥ १-१०-२ ॥ छनन-छनन बाजै लागै छगन कुआरि कन्या नाचइहिं हो। बहिनी हँसि-हँसि गावइ लागि सोहर सबै दिन नोहर हो॥ १-१०-३ ॥ अति बड़ी भागिनी नाउनी ते नेहछू करावइ हो। बहनी काटै खातिर रामजी के नेहवाँ नहरनी लै आवइ हो॥ १-१०-४ ॥ पहिन कुसुम रंग साड़ी तो मंगल गाँवइ हो। बहिनी कौसल्या के लाल के निहारि नयन फल पावै हो॥ १-१०-५ ॥ मोतियन थलिया भराय त रतनवा लुटाइहिं हो। बहिनी गिरिधर प्रभु चित लाई बधाई शुभ गाईय हो॥ १-१०-६ ॥
(गीत ग्यारह) भारत उत्तर दिशि कोशल जनपद सुंदर हो। जहाँ सरजू बिरजा नदी साथ अयोध्या स्वयं प्रगटिनी हो॥ १-११-१ ॥ बारह जोजन आयत तीन जोजन विस्तार हो। आठ चक्र नव द्वार समेत पुरिन में शिरोमनी हो॥ १-११-२ ॥ मनुवंश भूपन कै राजधानी भक्ति-मुक्तिदायिनी हो। जहाँ खेलैं बढ़े राम परमातमा बालक बनि आयनी हो॥ १-११-३ ॥ अवध उतर बहै सरजू बिमल जल पावनि हो। उनसे तीन सै धनुष दूरि दखिन में राम जन्मभूमि राजै हो॥ १-११-४ ॥ राघव कै जनमस्थान पुरातन सनातन हो। जहाँ नित कोटि- कोटि रामभगत करहिं राम-पूजन हो॥ १-११-५ ॥ इहाँ हेमकोशमय मंडप भवन दसरथ कर हो। जहाँ चैत शुक्ल नौमी दुपहरे कौसल्या ढ़िग राम आए हो॥ १-११-६ ॥ मेष कर भानु भौम मकर औ तुला क शनिश्चर हो। गुरु करक कै मनि कर शुक्र पाँचो हूँ ग्रह उच्च परे हो॥ १-११-७ ॥ धनु बान कर जलधर श्याम राम अति सुंदर हो। गिरिधर स्वामी कौसल्या पास ठाढ़े बिहँसि माता निरखहिं हो॥ १-११-८ ॥
(गीत बारह) जगत में होई गा उजियार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-१ ॥ साठि हजार बरिस महाराज जोहेनि। जप तप कइके निज पातक बिछोहिनी॥ दशरथ कई मिटा अँधियार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-२ ॥ कौसल्या कै कोख आजु बनि गई प्राची। उनके बिभव पर देवबधू नाची॥ मचा तिहुँ लोक जय-जयकार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-३ ॥ चैत शुक्ल पक्ष तिथि नौमी सुहाई। मंगल दिवस अभिजित घड़ी आई॥ सुर करें सुमन बौछार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-४ ॥ पाँच ग्रह उच्च परे करक लगन में। गुरु भए उदित मगन निज मन में॥ लंक खरभरि हाहाकार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-५ ॥ अवध औ गगन में बाजति बधाई। राम के जनम गीत गिरिधर गाई॥ चिर जीवौ कौसल्या कुमार हो। अँजोरिया अवध में उई गई॥ १-१२-६ ॥
(गीत तेरह) कौसिला के आगे प्रकट भये धरे धनु सायक हो। हरि-हरि पूरन ब्रह्म बिमोहन जोहन लायक हो॥ १-१३-१ ॥ लोचनाभिराम घनश्याम शरीर अति सोहई हो। हरि-हरि मधुर-मधुर मुसुकानि निरखि माता मोहई हो॥ १-१३-२ ॥ अरुन चरन अति सुंदर सोने कै खराऊँ लसै हो। हरि-हरि जैसे भानु मंडल बीच कमल जुग बिलसइ हो॥ १-१३-३ ॥ कटि पर पियर पीतांबर झिलमिल झलकत हो। जैसे मरकत गिरि पर प्रात सुरुज किरन ललकत हो॥ १-१३-४ ॥ काम करि कर सम पानि धनुष-बाण सोहत हो। जैसे आनंद घन इन्द्र धनुष लसित मन मोहत हो॥ १-१३-५ ॥ वक्ष पर बैजयंती माला निरखि नैन ललचत हो। जैसे जमुना के धार बीच सरसइ देखि मन हरषत हो॥ १-१३-६ ॥ सरद पूरन शशि आनन दसन सुहावन हो। हरि-हरि अरुण अधर मनभावन दुरित नसावन हो॥ १-१३-७ ॥ मुनि मन हरन कमल नैन कुंडल कपोल छुवै हो। जैसे गुरु जुग करि के मिताई मंगल मनुहार करै हो॥ १-१३-८ ॥ खंजन नयन भय मोचन भाल पै गोरोचन हो। सीस कनक की रीत अनुपम सुख लहै लोचन हो॥ १-१३-९ ॥ जेहिं लागि जोगी जतन करैं मुनिजन ध्यान धरैं हो। हरि-हरि सोई गिरधर सुख देन रमैया आज प्रगटेउ हो॥ १-१३-१० ॥
(गीत चौदह) [सारेह सोहर] अवध उदधि प्रगट भए रामचंद्र पूरन हो। हरि-हरि दिनवैं में चैत शुक्ल नौमी शरद पूर्णमासी बनी हो॥ १-१४-१ ॥ रानी कौसल्या दिशि प्राची सकल जग पूजित हो। जहाँ निकलंक राघव मयंक शुभांक प्रगट भए हो॥ १-१४-२ ॥ सरगों में जाय बिबुधगन कला जेकर पी न सके हो। जेका कुकरम राहु न दबाइ सके दुख न झुकाइ सके हो॥ १-१४-३ ॥ पाँचहुँ कलेस जेका छुइ न सके नित जो अरोग रहे हो। जेका गुरुतिय नितहिं अशिपति सब तिय पूजति हो॥ १-१४-४ ॥ कम से न जेकर मिताई कामारि जेका पूजत हो। ऐसे रामचंद्र जस सुधा सतत चकोर गिरिधर पिवहिं हो॥ १-१४-५ ॥
(गीत पन्द्रह) धनि-धनि कौसिला के अँचरा सब गुन आकर हो। जहाँ बरषा के बिना परमानंद कंद लहराइ रहे हो॥ १-१५-१ ॥ विपति कै झंझा जे के कबहुँक नहीं झकझोर सकि हो। जे के कबिकुल कोकिल कोटिन बारन गाएनि हो॥ १-१५-२ ॥ जनमा न सिंधु में कबहुँ जो न बात उड़ि सका हो। जे के सुरुज नरायन किरन माल नित पहिरावहिं हो॥ १-१५-३ ॥ कृपा सुधा धारा निरंतर जेकरा में सोहइ हो। उहै राम घनश्याम कवि गिरिधर मनवाँ के मोहइ हो॥ १-१५-४ ॥
(गीत सोलह) धनि-धनि कौसिला के आँचर सुख-सुषमाकर हो। जहाँ रामलला करुना के सागर बनि लहराइ रहे हो॥ १-१६-१ ॥ जेका मुनि कुंभज कबहुँ करि कोपिया न सोखि सके हो। उल्टे करि बहु पूजा सनमान आयुध सब सौंपेनि हो॥ १-१६-२ ॥ कोटि-कोटि हनुमत सम भट जेके नहिं लाँघि सके हो। अपने हिरदय मंदिर में बिठाइ मारुति नित पूजहिं हो॥ १-१६-३ ॥ कबहुँ तरंग में न भंग भयो सतत अगाध रहे हो। जहाँ भक्ति रमा सहित अनेक ललाम गुन राजहिं हो॥ १-१६-४ ॥ अस अनुपम गुन सागर कौसिला आँचर बिच हो। लखि-लखि निज नयन जुड़ावहिं गिरिधर गावहिं हो॥ १-१६-५ ॥
(गीत सत्तरह) कोटिक धनिक जेका धन से न कबहुँ बेसही सके हो। जेका चोरगन कबौं न चुराइ सके कबौं न दुराइ सकैं हो॥ १-१७-१ ॥ कोटि-कोटि लोभीगन जतनौं से जेका न संजोइ सके हो। कोटि-कोटि बेश-रसिक कबहुँ निज कंठ में न धरि सके हो॥ १-१७-२ ॥ जेकरा के मूल में न आइ पाइ कोटिकहुँ रिधि- निधि हो। कोटि भानहुँ की जोति जेका निरखि सकोच से मलिन भईं हो॥ १-१७-३ ॥ एइसन महान मरकत मनि रामलला रूप में हो। माता कौसिला के गोद में विराजत सब सुख साजत हो॥ १-१७-४ ॥ धनि-धनि कौसिला क कोख-कबहुँ नहिं ओछर हो। झाँकी-झाँकि कबि गिरिधर प्रमुदित गुन-गन गावत हो॥ १-१७-५ ॥
(गीत अठारह) धनि-धनि कौसिला कै अँखिया सकल श्रुति सखी बनी हो। जेकरे आगे बिराजत राम तमाल तरु सुंदर हो॥ १-१८-१ ॥ देवन क मद जे चुरन कीहे एैसे रावनादि भट हो। जेका कबहुँ न बल से न उखारि सकें अपने उखरि गइन हो॥ १-१८-२ ॥ कोटि-कोटि संकट क झँझावत जेके न हिलाइ सकेनि हो। जौन किहु से न कबहुँ उपरि सका औरन के उपारेसि हो॥ १-१८-३ ॥ सागर के पितृ बंश जनमि सुरेशगन बंदित हो। गंगा आदि जेकर चरन पखारिनी आरति उतारिनी हो॥ १-१८-४ ॥ कलप बिटप जे के पूजि के अभिमत पाएसि हो। ओहै राघव तमाल लखे गिरिधर गुन-गन गावहिं हो॥ १-१८-५ ॥
(गीत उन्नीस) धनि-धनि कौसिला की कोख न समता में दूसरि हो। जहाँ रामलला काम बनि प्रगटेनि कामना पुरावहिं हो॥ १-१९-१ ॥ त्रिपुरारी अगिनी नयन से न जेके जराइ सके हो। अपने मानस मंदिर में बिराजमान करि जेके पूजहिं हो॥ १-१९-२ ॥ कबहुँ न दुष्टन के चित में जवन पधराइ सका हो। जेके जोगजन सुमिरि-सुमिरि के समाधि सुख पावहिं हो॥ १-१९-३ ॥ बासना भुजंगिनी से दूर रहा नित नेम निरबहा हो। जेकर ध्यान करि इंद्रिय सनाथ भई त्रिबिध ईसना गई हो॥ १-१९-४ ॥ जेकरा कै झाँकि के निहारि कुसुम धनु मोहित हो। उहै काम रूप राम अवलोकतु गिरिधर दृग भरि हो॥ १-१९-५ ॥
(गीत बीस) धनि-धनि कौसल्या कै कोखिया मनोहर तलैया बनी हो। जहाँ रामलला इंदीवर प्रगटे चराचर के मोहत हो॥ १-२०-१ ॥ पातक की कीच में न जनमें सतत रहे निरमल हो। चंद्र किरनहुँ करि-करि जतन न शोभा के चोराइ सकीं हो॥ १-२०-२ ॥ जेकर मरंद अति पावनि पातकी भौंर पी न सके हो। दशमुख जैसे बनकर हाँथी न जेकरा के नोचि सके हो॥ १-२०-३ ॥ बासना सेवार जेके छुइनि न दुष्ट गन सँपनेहुँ हो। जेकर सुरभि न कबहुँ चोराइ सके महिमा न पाइ सके हो॥ १-२०-४ ॥ एैसन निहारि राम नील कंज सकल सुकृत पुंज हो। कवि गिरिधर सोहर गावत दिब्य सुख पावत हो॥ १-२०-५ ॥
(गीत इक्कीस) धनि-धनि कौसिला क आँचर सरसिज सुंदर हो। जहाँ रामरूप भँवरा बिराजत सब सुख छाजत हो॥ १-२१-१ ॥ सपनेहुँ भूलि के कमलिनी क गंध नहीं सेयनी हो। एक जनकसुता क मुख पंकज प्रीति रस मेएनि हो॥ १-२१-२ ॥ रावन सरिस मतवार गज गंधहुँ न सूँघेनि हो। भूलिहुँ के बासना सुमन जाल में निज फँसाऐनि हो॥ १-२१-३ ॥ नारिन के लोचन पुटन में कबहुँ नहिं बास किए हो। केवल संतन के मानस सरोरुह में सदा मँडरानिन हो॥ १-२१-४ ॥ निज जन कीरति बखान करि गूँजि गूँजि गाएनि हो। एैसन रामभृंग निरखत गिरिधर नैन फल पाएनि हो॥ १-२१-५ ॥
(गीत बाईस) कोटि-कोटि इंद्र औ कुबेर मिलि जेकरि न थाह पाएनि हो। जेकरे भौंह के बिलाश जोगमाया अनेकन भुवन रचै हो॥ १-२२-१ ॥ माया जीव करम और कालइं जेकरे बश नित्य रहैं हो। ब्रह्मा विष्णु अरु शंकर निरंतर जेकर अवलंब चहैं हो॥ १-२२-२ ॥ पाँचहुँ कलेश जेका छुइ न पाए करम न बिलाइ सके हो। जेका बासना समूह न नसाइ सके केऊ न सताइ सके हो॥ १-२२-३ ॥ सकल बिरोधी धर्म जहाँ रहैं जेसे सब सुख लहैं हो। जेकरे पास काम आदि नहीं फटकैं समय रहि अटकहिं हो॥ १-२२-४ ॥ जेकर चुटकी ईशारा पर महामाया नाचै हो। जोगी मुनि गन जेकरि कृपा की छाँह सुखी सुख राचहिं हो॥ १-२२-५ ॥ उहै एैश्वर्ज निज साथ लिहे परमप्रकाश किहे हो। रामलला आज अवध में प्रगटेनि सोहर गिरिधर गावहिं हो॥ १-२२-६ ॥
(गीत तेईस) वेद भगवान क निदेश पाइ अग जग शासक हो। जवन धरम के नाम से प्रसिद्ध धरनिहुँ के धारइ हो॥ १-२३-१ ॥ जेकरा के कारन मनुष्य अरु पशु में बिभेद भासै हो। जेकर आयसु पालि के महेशहुँ मन अति रीझहिं हो॥ १-२३-२ ॥ जेके श्रुति कहहिं सनातन परम पुरातन हो। जेसे शोभि रही लोक मरिजादा सकल गुन आगरि हो॥ १-२३-३ ॥ जेकरा कै कृपा पाइ प्राणी प्रभु क प्रेम पावहिं हो। जेकर सुजस पुराण निगमागम नेति कहि गावहिं हो॥ १-२३-४ ॥ उहीं धरम क रक्षन करै बदे ओकरा के साथ लेइके हो। आज रामलला अवध में प्रगटे सोहर गिरिधर गावहिं हो॥ १-२३-५ ॥
(गीत चौबीस) जेकरा से अग-जग पूरि रहे पाप सब दूरि रहे हो। जेका गाइ-गाइ घोर भव सागर तरत नर पामर हो॥ १-२४-१ ॥ गनिका अजामिल बियाध गीध जेकरा कइ छाँह पाए हो। जेकर सुरभि के सूँधि कोटि पतित कुगंध के नसाइ दीहे हो॥ १-२४-२ ॥ पतित पावन दीनबंधु कृपा कै जौन सागर हो। जेके करुनानिधान कहि सज्जन गाइ सुख पावहिं हो॥ १-२४-३ ॥ सत कोटि रामायन रचि जे के आदि कबि गावहिं हो। शेष शारद नारद गौरि हर पार न पावहिं हो॥ १-२४-४ ॥ उहै जस चंद्र निज साथ लिहे जगत सनाथ किहे हो। आज अवध में रामलला प्रगटेनि मुदित देखि गिरिधर हो॥ १-२४-५ ॥
(गीत पच्चीस) चंचल सुभाउ निज छोड़ि प्रभु पास जे अचल रहहिं हो। जे से शरणागति क ब्यवहार जगत सब सीखै हो॥ १-२५-१ ॥ जेकरा के सुमिरे से पतितहुँ होई जाएँ पावन हो। जे के सेवा धन क अचरजवा कहिं लोग गावहिं हो॥ १-२५-२ ॥ जेकरा से शोभा क बिधान सकल प्राणी पावहिं हो। ब्रह्मानी उमा इंदिरा निरंतर जेकरा के ध्यावहीं हो॥ १-२५-३ ॥ रामजी कै शक्ति आह्लादिनी जेकरा के श्रुति कहें हो। जिनकी करुणा से जगत कै उतपति पालन प्रलय होए हो॥ १-२५-४ ॥ भगतन कर त्रय ताप औ पाप शाप नासहिं हो। जाकि सेवा करि सकल मनोरथ मुनि जन बाछहिं हो॥ १-२५-५ ॥ सोइ अनपायनी श्री के साथ लिए भगतन सुख दिये हो। आजु रामलला अवध में प्रगटेनि गिरिधर सुखकर हो॥ १-२५-६ ॥
(गीत छब्बीस) जेकरा के हेतु जती जोगी मुनि सतत जतन करैं हो। अनुरागी औ बैरागी बड़भागी जेकरा के लागि तरसहिं हो॥ १-२६-१ ॥ बुध जन बेद औ पुरानन पढ़हिं औ पढ़ावहिं हो। प्रभु कृपा से कबहुँ एक बूँद जवन कर पावहिं हो॥ १-२६-२ ॥ जेकरा के बिना नर पामर जनम अकारथ हो। जेकरा के लागि सुर मुनि झँखहिं धूरि मुँह फाँकहिं हो॥ १-२६-३ ॥ जेकरा से संवित शक्ति प्रभु कै जग आगरी हो। जेकरा से प्रभु सरबग्य तुरीय करैं चातुरी हो॥ १-२६-४ ॥ जेकरा से लोग प्रभु जानहिं राम के बखानहिं हो। जेकरा के पाइ जन कृतकृत्य सकल सुख मानहीं हो॥ १-२६-५ ॥ उहै ज्ञान नित्य एकरस अखंड अनामय प्रभु निज साथ लिए हो। रामलला आज अवध में प्रगटेनि गिरिधर सरबस हो॥ १-२६-६ ॥
(गीत सत्ताईस) जेकरा से अग-जग रचि के बिरागी राम सोहत हो। जे के पाइ मुनि जोगी संन्यासी भरम के बिपोहत हो॥ १-२७-१ ॥ जेकरा से बिषय-बिराग औ राम अनुराग बढ़ै हो। जे के पावे बदे कोटि-कोटि साधक घर से निकरि कढ़े हो॥ १-२७-२ ॥ जेकरा के कृपा से संसार कर राग दूर भागत हो। जे के साधक भव घोर रजनी में नित रहैं जागत हो॥ १-२७-३ ॥ मुनि जन कर जे परम धन संजम क सरबस हो। चहुँ पुरुषारथ केर प्रान साधन कर सुधारस हो॥ १-२७-४ ॥ जेका बदे देवताहुँ ललचहिं मुनि गन तरसहिं हो। जेका पावे बदे साधु जन साधि-साधि नैन जल बरसहिं हो॥ १-२७-५ ॥ उहै प्रबल वैराग्य निज साथ लिए भगवान भाव दिए हो। आज रामलला अवध में प्रकटेनि गाव गिरिधर सोहर हो॥ १-२७-६ ॥
(गीत अठाईस) निरूपम अखंड ऐश्वर्ज से सब बिधि पूरन हो। हरि-हरि रामलला ब्रह्म भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-१ ॥ श्रुति प्रतिपाद्य सर्वधर्म से भली-भाँति पूरन हो। हरि-हरि रामलला दिव्य भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-२ ॥ निरमल जस अकलंक बिमल बिधु पूरन हो। हरि-हरि रामलला भव्य भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-३ ॥ शोभा कांति सुषमा सहित श्री से नित परिपूरन हो। हरि-हरि रामलला नव्य भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-४ ॥ तिहुँ काल निरबाध ज्ञान अखंड सदा पूरन हो। हरि-हरि रामलला सत्य भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-५ ॥ बशीकार बिमल बैराग्य विभूति बिभु पूरन हो। हरि-हरि रामलला नित्य भगवान अवध आज प्रगटेनि हो॥ १-२८-६ ॥
(गीत उन्तीस) रूप गुन शील से अपूरब बय से अपूरब हो। हरि-हरि दशरथ जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-१ ॥ बल बुधि बिनय अपूरब बिधा नय पूरब हो। हरि-हरि मुनि जन जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-२ ॥ मरिजादा चरित अपूरब भावना अपूरब हो। हरि-हरि सुर गन जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-३ ॥ सुषमा सौंदर्य में अपूरब शोभा में अपूरब हो। हरि-हरि विश्वामित्र जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-४ ॥ सुगुन माधुर्य में अपूरब ज्ञान में अपूरब हो। हरि-हरि राजा जनक जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-५ ॥ सरल सुभाव में अपूरब भाव में अपूरब हो। हरि-हरि कौसल्या के जाग के अपूरब रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-६ ॥ गिरिधर गीत सोरह सोहर सौरी में गावहु हो। हरि-हरि रामलला कृपा से सुभग पूत भक्ति बर पावहु हो॥ १-२९-७ ॥
(गीत तीस) धनि-धनि नगरी अयोध्या धनि सरजू नदी हो। हरि-हरि कौसल्या की कोख जहाँ रामलला प्रगटेनि हो॥ १-२९-१ ॥ धनि-धनि महाराज दशरथ धनि भाग उनकर हो। हरि-हरि धनि-धनि दशरथ जाग जहाँ रामलला प्रगटेनि हो॥ १-३०-२ ॥ सकल चराचर नायक जन सुखदायक हो। हरि-हरि हाथ धरे धनु अरु सायक भगवान प्रगटेनि हो॥ १-३०-३ ॥ पनर बरिस की बयसिया अेबे न रेख उठत हो। हरि-हरि ब्रह्मानन्द घन सी मूरतिया निरखि मन मोहत हो॥ १-३०-४ ॥ धनि बनी रिकताहुँ नवमी पूरन ब्रह्म प्रगटाई हो। हरि-हरि नखत पुनरबसु धनि-धनि रामजन्म मंगल हो॥ १-३०-५ ॥ बजे लागीं आनंद बधाईं गगन अरु अवध में हो। हरि-हरि गिरिधर जीवन के धन रामलला प्रगटेनि हो॥ १-३०-६ ॥
(गीत इकतीस) प्रगट भये कौसिला ललनवाँ रामलला अवध अँगनवाँ॥ माता कौसल्या की कोखिया सुहानी महाराज दशरथ की छतिया जुड़ानी॥ सुफल भये सबके नयनवाँ रामलला अवध अँगनवाँ॥ साठि हजार बरिस सिहेकत सिहैकत बीते। पूरे बिधि अमरित से कलश रहे रीते॥ सुख उमड़े नगर औ गगनवाँ रामलला अवध अँगनवाँ॥ बरसै सुमन देव दुंदुभी बजावैं। रामजनम उतसाह जनम फल पावैं॥ सुखी भए सबके परनवाँ रामलला अवध अँगनवाँ॥ अवध के अँजोरिया की पहली किरनिया। पूरी भइ आनंद में उमगि धरनियाँ॥ गिरिधर क धन्य भा जीवनवाँ रामलला अवध अँगनवाँ॥
॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ प्रथम किरन सम्पूरन ॥