अवधी भाषा अवध धुनि अवधी अवध किशोर। रामचन्द्रमुख चन्द्रमा गिरिधर चतुर चकोर॥
पुरखन के पुन्नि प्रभाव से अउर साकेत वासिनी शची माई के सुकृत से हमार जनम आज से एकसठि वरिस पहिले चौदह जनवरी ओनइस सौ पचास में मकर संक्रान्ति बेला में अवध प्रान्त के मध्य भाग, जवनपुर जनपद के साँडी नाउ के गाँऊ में भ रहा। जेके पहिले लोक सान्धी कहत रहेनि। जनश्रुति के अधार पर इ सुनई में आवय कि भगवान राम बनवास यात्रा में पहिली सन्ध्या इही गांव में किहे रहेनि। इही कारन अवधी भाषा से हमार लगाउ तवइ से बाटई जबसे हम समुझाइ लागे। यह विषय में हमार मत निर्विवाद वाटइ कि संस्कृत भाषा के अनन्तर जदि कौनउ भाषा में पून्य जनकता वा, त ओकर नाउ बाटई अवधी भाषा। ई हम कवनउ पक्षपात नाही करत हई। यह सम्बन्ध में वाल्मीकि रामायण क एक कथा बहुतप्रसिद्ध बाटई, जब सागर पार कइके हनुमत जी सीताजी के पास पहुचेनि त ओ सोचइ लागेनि कि सीता माता से कौनी भाषा में बात करी। कारन कि जब संस्कृत में बोलब त सीता माता हमके रावन समझि के डेराई जइही। तब एनसे या तो मैथिली में बोली या अवधी में। हम एनके ससुरारी क दूत हई एहिनाते अवधीयइ में बोलब। इहई निश्चय कइके हनुमान जी अवधी में राम के सन्देश दइके सीता जी के जिआइ दिहेनि। यह उद्धरन से हमरे मन में अवधी के ऊपर और प्रेम औ आकर्षण बढ़िग। अब त कुछ ऐसनि मन क भाव बनिग कि हम निरन्तर अवधिइ में बोलइ क प्रयास करी थ। इही क परिणाम या इ अवध कै अँजोरिया।
जउने समय राम जनम भूमि क निरनय होइ वाला रहा करोड़न राम भक्तन क मन नइहरे क भूतन की नाई मनमनात रहा, उहीं समय हमहूँ राम जी से एक मनता माने रहे कि हे राघव सरकार जब तू न्यायाधीशन के कलम पर बइठि क हिन्दुअन के पक्ष में निश्चय करवाइ देव तब हम शुद्ध अवधी भाषा में तोहार गुनगान करब। राघव जी हमार बात मानि लिहेनि। विगत ३० सितम्बर के हमरे पक्ष में राम जनम भूमि क निरनय आइ ग उहीं दिन हम अवध कै अँजोरिया क प्रारम्भ किहा। यद्यपि वहि समय हम अनुष्ठान में रहे, केवल सांझि के समय थोर थार अवधी आदि भाषा में बोलत रहे। परन्तु मुन्ना सरकार शिशु राघव के कृपा से ई गीत प्रबन्ध ग्रन्थ पनरहइ दिन में पूरा होइग।
यदि संकलन का कलेवर जद्यपि बहुत छोट क बाटई तबउ एकर अच्छर अच्छर सीताराम जी के प्रेमामृत से भरा बाटई। हमरे मन में पूरा विस्सास का कि जब भक्ति सहित मन में अवधी भाषी बहिन, भाइ, महतारी, बिटिया, मित्रगगण इ ग्रन्थ उत्साह से पढ़िहीं और उछाह से गइहीं तो अनेके मन से श्री सीता राम जी के चरन कमल के प्रति प्रेम बढ़े और ओन कर कर कल्यानउ होए। बेटवा बिटिया के जनम के समय ब यह पोथी से सोहर अउर उठान गइही तो ओन कर बिटिया बेटवा निरोग और चिरंजीवी रहिहीं। इही आशा और विश्वास के साथ हम आप सब के मंगलाशासन दे थई।
इति मङ्गलमाशास्ते
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य
स्वामी रामभद्राचार्य
॥ श्रीराघवः शन्तनोतु ॥