॥ नमो राघवाय ॥ ॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ दूसरी किरन ॥
(गीत एक) राघव के निहारि माता धरे सर धनुहियाँ। टुकुर-टुकुर ताकैं जैसे चकोरी जोनहियाँ॥ २-१-१ ॥ मनवाँ में सोचैं टोना लावै न टोनहियाँ। अँचरा से ढाँकिकरै बिनय मनहियाँ॥ २-१-२ ॥ बयस किशोर सोहे खंजन सी अँखिया। चिक्क कपोल उठि अबही न रेखिया॥ २-१-३ ॥ पियर पीतंबर सोहे साँवरि सरीरिया। दिब्य घन पर जैसे लहरे बिजुरिया॥ २-१-४ ॥ कंचन किरीट सिर कुंडल करनवाँ। दाड़िम दशन मुख-कमल बरनवाँ॥ २-१-५ ॥ भूषन अलंकृत बिभूषित सुभग सब अंग बा। लाजत निहारि शोभा कोटिक अनंग बा॥ २-१-६ ॥ हरषित माता रूप अद्भुत देखि के। बिसमय पुलकित अलौकिक पेखि के॥ २-१-७ ॥ बोले गिरिधर प्रभु जननी निहोरि के। बचन बिनीत मंजु नेह सुधा घोरि के॥ २-१-८ ॥
(गीत दो) अजुवै रवनवाँ के रन में हम मारब। तोहार माछु माइ बैर अजुवै निवारब॥ २-२-१ ॥ अजुवै करब गढ़ लंक पे चढ़ाइ। करबै दशानन से अजुवै लराइ॥ बनरन से थुथुरवाइ अंतीया निकालब। तोहार माछु माइ बैर अजुवै निवारब॥ २-२-२ ॥ तोहरे हरनवाँ क लेब प्रतिशोधवा। लंका के तहस-नहस करब करि बिरोधवा॥ दुष्टन के खेतवा में खेदि-खेदि मारब। तोहार माछु माइ बैर अजुवै निवारब॥ २-२-३ ॥ बानन से दशों शीष बीसों भुजा काटब। मुड़ काटि-काटि आज पुहमी के पाटब॥ पापी के रुंड-मुंड काटि-काटि डारब। तोहार माछु माइ बैर अजुवै निवारब॥ २-२-४ ॥ अजुवै निपट जाए पापपुंज सरवा। करमन क फल पाए जनम कै छीनरवा॥ गिरिधर कै ईश ओकर छाती आज फारब। तोहार माछु माइ बैर अजुवै निवारब॥ २-२-५ ॥
(गीत तीन) सुनई महतारी तजि द मन के भरमवाँ हो। हम तो अही असुरन के काल हमैं जिनि बालक समुझ्यऊ॥ २-३-१ ॥ डर जिनि निरखि हाथ-पाँय के नरमवाँ। हम तो अही कुलिस से कराल हमैं जिनि बालक समुझ्यऊ॥ २-३-२ ॥ नैन से निहार तनी सारंग धनुषवा। जेकरा के देखि डरै शक्र क कुलिसवा॥ सुनि के टंकोर छूटे रिपु के घरमवाँ हो। होईं सब निशाचर बेहाल हमैं जिनि बालक समुझ्यऊ॥ २-३-३ ॥ देखइ पूर्ब कल्प खर- छूषण क रनवाँ। कीहा हम अकेलई चौदह सहस के बधनवाँ॥ देख मोरि मावा आज दारुन करमवाँ हो। रुद्र देव पहिरैं मुंडमाल हमैं जिनि बालक समुझ्यऊ॥ २-३-४ ॥ बयस किसोर देखि करइ न संदेहवा। बालक के भाव नित करइ तु सनेहवा॥ गिरिधर गुन गाय अब जपे राम नमवाँ। हम तो अही प्रनत प्रतिपाल हमैं जिनि बालक समुझ्यऊ॥ २-३-५ ॥
(गीत चार) पहिले तूं किह्यो तप भारी। उहीं क फल मिला महतारी॥ २-४-१ ॥ स्वायम्भुव मनु कै तू रह्यू पटरानी। नाम शतरूपा सकल गुन खानी। पति के रिझायू ब्रतधारी उहीं क फल मिला महतारी॥ २-४-२ ॥ तेइस हजार बरिस किह्यूँ तू तपस्या। हम के रिझाई लिह्यू कइ के बरिबस्या। बत्सल सनेह सुखकारी उहीं क फल मिला महतारी॥ २-४-३ ॥ भगतन के योग्य बरदान षट् माँग्यु। हमरे चरन में सदैव अनुराग्यू। बिषय मोहमाया दूर डारी उहीं क फल मिला महतारी॥ २-४-४ ॥ तुहीं बन्यो कौसल्या मनु बने दशरथ। हम बनि के पूत किहा पूरन मनोरथ। गिरिधर प्रभु भक्त भयहारी उहीं क फल मिला महतारी॥ २-४-५ ॥
(गीत पाँच) [कौसल्या उवाच-] हम जानि लीहा राघव तू सबसे बड़ा बाटइ। हम मान लीहा राघव तू सबसे बड़ा बाटइ॥ २-५-१ ॥ गुन-गन तोहार अगनित श्रुति नेति-नेति गावैं। महिमा जलधि क अहीपति शारद न पार पावैं॥ होइके तू बिभू भूमा भूयैं पे खड़ा बाटइ। हम समुझि लीहा राघव तू कितना बड़ा बाटइ॥ २-५-२ ॥ प्रतिरोम तोहरे लहरैं शतकोटि क्षीर सागर। ब्रह्मांड कोटि झहरैं एक-एक रोम आगर॥ एतनेउ पे हमार घन पै पीयै के अड़ा बाटइ। हम देखि लीहा राघव तू जितना बड़ा बाटइ॥ २-५-३ ॥ तू बाटइ सर्बसमर्थ भगवान ब्रह्म ईश्वर। उद्भव विभव पराभव लीला तोहारि रघुबर॥ इतनेउ पे रवनवाँ के अँखियन में गड़ा बाटइ। हम पेखि लीहा राघव तू जितना बड़ा बाटइ॥ २-५-४ ॥ अँड़तिस वर्श जीयै द रावन के अबै राघव। भगतन के रस पीयै द लीलन के क्रम से अभिनव॥ गिरिधर गिराभरन में नग जैसै जड़ा बाटइ। हम लेखि लीहा राघव तू सबसे बड़ा बाटइ॥ २-५-५ ॥
(गीत छ:) [कौसल्या उवाच-] राघव अबै रहै द रावन कै समरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-१ ॥ साठ हजार बरिस के पाछै हमरे गरभ में आय इ। पनरह बरिस की बयस में प्रगट्य बझनीके नाम मिटाय इ॥ चारिउ दिशा में लहरी आनंद कै लहरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-२ ॥ तनय किशोर गरभ से जनमा सुनि लखि के पतियाए। दत्तक लीहैंनि कौसिला दशरथ लखि सुनि जग गरियाए॥ हे हरि इहौ काटि द जग कै संशय डोरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-३ ॥ धनुष बाण तरकश रण कर्कश जुवक स्वरूप छिपाव इ। बनि जा बत्स भक्तबत्सल हमरौ अभिलाष पुराव इ॥ खेल इ अवध की खोरियन अजुरिन भरि-भरि धूरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-४ ॥ कलबल बचन तोतरे मंजुल कहि माँ हमैं बुलाव इ। तात-तात कहि अवध नृपति के अंक बैठि सुख पाव इ॥ पहिर इ श्याम बपुष पर पियरि झीनि झिंगुरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-५ ॥ लीला पंच प्रगट करि रघुबर पाँच क्लेश निवार इ। सुजस गवाइ कोटि पतितन के भव-निधि उतार इ॥ गिरिधर भरैं राम छबि अमिय से नयन गगरिया जननी मनुहरिया करै॥ २-६-६ ॥
(गीत सात) [कौसल्या उवाच-] श्रुति पुरान सुर साधु सब साखी कहत पुकारि। सेवक रुचि राखी सदा गिरिधर प्रभु असुरारि॥ गिरिधर गीत पचीसि का भावी सुनिय सुहाय। तसि तसि करिये जेहिं जेहिं सबकैं रुचि रहि जाय॥ [अब भुसुंडि कै रुचि सुनइ-] हाथ जोरि पाँय परि करि मनुहरिया। महतारी हमैं अँगना से कभौं जिनि उड़ाइयू॥ २-७-१ ॥ पितर पक्ष सराधे में कबहुँ नहिं आउब। चैत राम नौमी के आइ सुख पाउब॥ रामजी के जूठन मैया हमके खियाऊ। कौसल्या अपने अँगना से कभौं जिनि उड़ाइयू॥ २-७-२ ॥ मैया हम जनमे से बाभनऔवा बेटौआ। लोमश सराप देइके बनै दीहेनि कौआ॥ बरन कै मरजादा मानि जिन रेरियायू। कैकेई हमें अँगना से कभौं जिनि उड़ाइयू॥ २-७-३ ॥ रेवंछि- रेवंछि रामलला के हम रिझाऊब। किरिया तोहारि उन्हैं कबहुँ न खिझाऊब॥ तोहऊँ किरोध कइके जिनि दुरियाऊ। सुमित्रा हमें अँगना से कभौं जिनि उड़ाइयू॥ २-७-४ ॥ हमहूँ तोहार अहि पँचवा बेटौवा। फलाहारी जनमे से भले जाति कौवा॥ गिरिधर के ईश रामचरन में लगायू। हे मैया हमें अँगना से कभौं जिनि उड़ाइयू॥ २-७-५ ॥
(गीत आठ) [कौसल्या उवाच-] [अब मँझली महतारी क आश्वासन सुनइ-] उड़त रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-१ ॥ नित मोरे राम तोहे खेल में बोलैहैं। आवत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-२ ॥ नित मोरे राम तोहे संग में खेलइहैं। रमत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-३ ॥ नित मोरे राम दही-भात खवइहैं। चुनत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-४ ॥ चुटकी बजाय तोहैं राघव नचइहैं। नचत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-५ ॥ जब मोरे राम तोहे पकरन को धैहैं। बचत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-६ ॥ नित गिरिधर संग राम बाल लीला। गावत रहियो कागा मोरे अँगनें में॥ २-८-७ ॥
(गीत नौ) [कौसल्या उवाच-] [अब चंद्रमा के बिषय में हमारि रुचि सुन इ-] अवध की कनक अटरिया चमाचम चमकै हो। हरि-हरि तेहि चढ़ि ठाढ़ी कौसल्या माता चंदा से विनय करैं हो॥ २-९-१ ॥ चंदा मामा आरे आवउ पारे आवउ अंगुरि सहारे आवउ हो। चंदा बनि जा तू राम के खिलौना रमैया मोरि खेलिहैं हो॥ २-९-२ ॥ रहय्य अकास में अकेलवा बहुत डर लागै हो। चंदा भाइन संग राम तोहँके बिहँसि के खेलेइहैं हो॥ २-९-३ ॥ सरजू क उ जूड़- जूड़ पनियाँ अमिय सम पियइहैं हो। ताहैं सोने के कटोरे दूध भतवा रमैया मोर खियइहैं हों॥ २-९-४ ॥ कबहुँ न पाया तूँ कमलवा तोहार नैना तरसैं हो। तोहैं सात-सात सुंदर कमलवा रमैया मोर दैहैं हों॥ २-९-५ ॥ राम मोर धनुहिं चढ़इहैं औ तीरीया चलइहैं हो। चंदा गहने कै पीरीया गिटइहैं औ राहु के भगइहैं हो॥ २-९-६ ॥ रथिया क उमिर गा बूढ़ान बाटै बहुत डेरान बाटै हो। तोहैं अवध के बिपिन हरिनवाँ रमैया मोर दैहैं हो॥ २-९-७ ॥ चंदा मामा मान इ मोरि बतिया बिताव इ जिनि रतिया हो। चंदा गिरिधर हृदय अकसवा रमैया मिलि बिलसहु हो॥ २-९-८ ॥
(गीत दस) [कौसल्या उवाच-] [अब एक अवधी मेहरारु कै रुचि सुनइ-] राघव जी के पायँन में पनहियाँ हो हे सजनी बड़ि नीक लागैं॥ २-१०-१ ॥ साँवर सरीर पर झलकै झँगुरिया। बजरा कै बीच जैसे चमकै बिजुरिया। शीश सोहै पियरि कुलहिया हो हे सजनी॥ २-१०-२ ॥ खंजन लजाइ जाए निरखि नयनवाँ। दुइ-दुइ ठि दतुरि लसै कमल बदनवाँ। लखि लाजे सरद जनुहियाँ हो हे सजनी॥ २-१०-३ ॥ अमवाँ के पालौ जैसन अरुन अधरवा। कर में कंकन सोहै हिय सोहै हरवा। टोना जनि लावै कोउ टोनहियाँ हो हे सजनी॥ २-१०-४ ॥ ठुमुकि-ठुमुकि खेलैं नृपति अँगनवाँ। गिरिधर कै चुराइ लीहैनि रामलला मनवाँ। करतल सींक सर धनुहियाँ हो हे सजनी॥ २-१०-५ ॥
(गीत ग्यारह) [कौसल्या उवाच-] [अब नागरिन कइ रुचि सुनइ] खेलैं भौंरा गोली चकडोरि मोरि सजनी। रामलला अवध खोरि-खोरि मोरि सजनी॥ २-११-१ ॥ रिपुहन भरत लखन लिए संग में। बाल सखा साथ सब नूतन उमंग में॥ जोहैं सब माता तृन तोरि मोरि सजनी। रामलला अवध खोरि-खोरि मोरि सजनी॥ २-११-२ ॥ करतल लसे सींक बिसिख धनुहियाँ। नलिन चरन जुग बिलसे पनहियाँ॥ आनन शरद कै अँजोरि मोरि सजनी। रामलला अवध खोरि-खोरि मोरि सजनी॥ २-११-३ ॥ दसरथ शोभा लखैं संग सब रनियाँ। आनंद उमगि आज अवध रजधनियाँ॥ जै-जै सुर कहत निहोरि मोरि सजनी। रामलला अवध खोरि-खोरि मोरि सजनी॥ २-११-४ ॥ खेलन में हारेहु भरत के जितावैं। बरसि सुमन सुन मुनि सुख पावैं। गिरिधर चित लिए चोरी मोरि सजनी। रामलला अवध खोरि-खोरि मोरि सजनी॥ २-११-५ ॥
(गीत बारह) [कौसल्या उवाच-] तोहरे बरुआ ब्याह में जवन गवाउब गीत। सुनहु श्रवण मन लाइ प्रभु गिरिधर गिरा पुनीत॥ दशरथ पास बैंठिं तीनों महारानी चक्रवर्ती से बिनय करैं हो। सुनहु-सुनहु कोसलेश्वर आप धार्मिक शिरोमनी हो॥ २-१२-१ ॥ गुरु की कृपा से हमरे प्रगटेनि चौथेपन चारि बालक हो। राम भरत लालन लछिमन शत्रुहन कुल पालक हो॥ २-१२-२ ॥ सतयैं बरिस में प्रबेश कीहेनि अब राम संग भाइन हो। चारिउ ललन के जनेऊ करौ शुभ घरी अब आइनि हो॥ २-१२-३ ॥ बल की ईच्छा से राजपूत कर ब्रतबंध बलदायक हो। जब सतयैं में होइ बिधि पूरन इहै श्रुति सब भाखहिं हो॥ २-१२-४ ॥ हम तीनों माता इन्हैं भीख दे के जन्मसुफल बनाऊब हो। भिक्षा भवति देहि राघव जब कहिहैं छाती गजगज होइहैं हो॥ २-१२-५ ॥ न्योता राजा सब ईष्ट मीतन के हमार तीनौं नैहर हो। दक्षिन कोसल कैकय मागध तीनों ननियाउर हो॥ २-१२-६ ॥ न्योता राजा शांता बिटियवा ऋषि ऋंग जमाई हो। राजा एक जिनि नेवत्यो रतनवाँ ओसे बैर पुरातन हो॥ २-१२-७ ॥ जग केर सकल सुवासिनि राजा बोलि जेवांवहु हो। राजा जिनि एक नेवत्यो सूपनखि ओसे हम बड़ि रूसलि हो ॥ २-१२-८ ॥ बचन सुनत राजा बिहँसेनि अति सुख पाएनि हो। भई साथ में राम के जनेऊ कीहेनि गिरिधर गीत गाएनि हो॥ २-१२-९ ॥
(गीत तेरह) बेरिया की बेरि तोहैं बरजौं रामचन्द्र बबुआ मिथिला डगर जनि जाहु इ। मिथिला डगर तारका राक्षसी बसत है मानुष के देखि खरखाई॥ २-१३-१ ॥ बेरिया की बेर तोहैं बरजौं रामभद्र लाला मिथिला डगर जनि जाहु इ। मिथिला डगर मारीच-सुबाहु रहत हैं सुभटहुँ देखि के डेराहीं॥ २-१३-२ ॥ बेरिया की बेरि तोहैं बरजौं रघुनन्दन बबुआ मिथिला डगर जनि जाहु इ। उहीं रहिया रहै एक शिला बनि नारी धीरहुँ देखि डरि जाइ॥ २-१३-३ ॥ बेरिया की बेर तोहैं बरजौं मोर राघव बेटवा मिथिला डगर जनि जाहु इ। उहाँ सीय स्वयंबर शिव धनु धरे पन राजा सुनि मन बिलखाइ॥ २-१३-४ ॥ कौशिक की सेवा करि जग्य के सुधारि बेटा लवटि अजोधिया में आऊ। गिरिधर प्रभु तोहैं सीया आइ मिलिहैं मन महँ जनि अकुलाऊ॥ २-१३-५ ॥
(गीत चौदह) बोली माता अरुंधती रानी भयू बावरी जान्यू नहिं राम के प्रभाव हो। कालहुँ के काल ये तोहार लाल प्रगटेनि देखिबे में सरल सुभाव हो॥ २-१४-१ ॥ बिधि कै बिनय सुनिय आएनि अजोधिया में पिएनि कौसिला जू क दूध हो। परब्रह्म भगवान पुरान पुरषोत्तम दीनबंधु प्रभु जगदीश हो॥ २-१४-२ ॥ तारका सुबाहु मारि मारीच पँवारि दूर शिला पद रज से उधारि हो। शिवधनु भंजि सीता ब्याहि के लौटिहैं अवध में राम रावणारि हो॥ २-१४-३ ॥ चारिउ भाई मिथिला में एकई संग ब्याहि जैइहैं महारानी मान मोरि बात हो। रिशि संग पठव इ कुतरक न कर रानी गिरिधर प्रभु पारिजात हो॥ २-१४-४ ॥
(गीत पन्द्रह) घर-घर मंगल सजाऊ रे अवध सीया दुलहिनि आवै। नभ-पुर बाजन बजाऊ रे अवध नई दुलहिनि आवै॥ २-१५-१ ॥ दूब दधि अक्षत कलस करु पूरन। द्वार-द्वार तोरन बनाऊ रे अवध सीया दुलहिनि आवै॥ २-१५-२ ॥ चमर पताक ध्वज हाट-बाट साजौ। मोतियन चौक पुराऊ रे अवध सीया दुलहिनि आवै॥ २-१५-३ ॥ गली-गली सींचु अति सुरभि अरगजा। मनिमय दीपक बराऊ रे अवध सीया दुलहिनि आवै॥ २-१५-४ ॥ माँडवी उर्मिला श्रुतकीरति सहित राजे। गिरिधर बानी गीत गाऊ रे अवध सीया दुलहिनि आवै॥ २-१५-५ ॥
(गीत सोलह) माँगै सीया हरषाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-१ ॥ द्वारै पै ठाढ़ि ठनगनि करै दुलहिनी। हँसैं सखी ताली बजाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-२ ॥ कनक भवन कैकेई माता सौंपिनि। मणि-पर्वत सुमित्रा देवाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-३ ॥ असमंजस में परि गईं कौसल्या। अनुपम बधू मन भाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-४ ॥ अनुपम नेग कछु देइ चाहे इनके। बड़ी बेर पाछे बुधि आई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-५ ॥ रामलला एकई हमार धन सरबस। बहू के एन्हई देई सुख पाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-६ ॥ गिरिधर प्रभु अब सीताराम बनिहैं। हम रहब कौसल्या माई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-७ ॥ सीता के कर राम सौंपि कौसल्या। अवध में अँजोरिया सुहाई कौसल्या सन मुँह कै दिखाई॥ २-१६-८ ॥
(गीत सत्तरह) [कौसल्या उवाच-] बन लीला में कैकई केवट पथिक पुनीत। गुह हमार उद्गार सुनि गिरिधर प्रभु सुबिनीत॥ [कैकई उवाच-] सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥ २-१७-१ ॥ जाम्बु नद कै पीठीया रचि दे खुँटीया नील रतनवाँ ना। चारि फलन पावा रचु आखर जुग-जुग जीव जतनवाँ ना॥ २-१७-२ ॥ सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥ जामिक जुगल राति-दिन करिहैं पुरजन प्रजा तरनवाँ ना। सावधान होई आगे रखिहैं भावुक भरत परनवाँ ना॥ २-१७-३ ॥ सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥ सम्पुट भरत सनेह रतन के मुनिगन हृदय निधनवाँ ना। साधु-संत के जीवन सरबस साधक जन के धनवाँ ना॥ २-१७-४ ॥ सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥ रघुकुल कै ये जुगल केवरिया कौसल करम करनवाँ ना। सेवा परम धरम के निरुपम निर्मल ललित नयनवाँ ना॥ २-१७-५ ॥ सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥ सीयराम अवतरन भूमि ए धरम क पीठ सदनवाँ ना। करिहैं चौदह बरिस षसनवाँ शसनवाँ रमिहैं गिरिधर मनवाँ ना॥ २-१७-६ ॥ सोनरा गढ़ि दे सोने के खरुवाँ राम मोरे जइहैं बिपिनवाँ ना॥
(गीत अठारह) [केवट उवाच-] आव हो इ जग नाव के खिवैया राघव तुम बिन सूनी मोरी नैया॥ २-१८-१ ॥ गहरी गंगा नाव पुरानी संग न संबल सारंगपानी। अब पवन चले पुरवैया राघव तुम बिन सूनी मोरी नैया॥ २-१८-२ ॥ तुम्हरे दरस बिनु अँखियाँ प्यारी जिनि तरसाव इ अवधपुर बासी। अब आव इ भरत के भैया राघव तुम बिन सूनी मोरी नैया॥ २-१८-३ ॥ अधम उधारन जन हितकारी गहर न लाव इ भगत भयहारी। जिनि बिलंब लगाव इ रघुरैया राघव तुम बिन सूनी मोरी नैया॥ २-१८-४ ॥ सीता लखन संग पार उतारूँ गिरिधर प्रभु भरि नयन निहारूँ। हम तोंह से न लेब उतरैया राघव तुम बिन सूनी मोरी नैया॥ २-१८-५ ॥
(गीत उन्नीस) [ग्राम नारी उवाच-] हम खाबै बजरी तोहैं खियौबे चाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-१ ॥ तीनों जनै अमवाँ के नीचवाँ छँहाइ ल इ। बाट इ मुखान बहुत रोटी साग खाइ ल इ॥ हम पीबै मड़वा तोहैं पियउबै जाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-२ ॥ खाइ बदे बाटै साग हरियरी मुरैया। सौवै बदे बाटै एक टुटही मड़ैया ॥ इ तोहार घर न सासुर ननियाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-३ ॥ सुरुज किरन लागे मुँह कुम्हिलाए। भुखिया पियसिया से मुड़वा पिराए॥ मानत न बात बा सुभाव लरिकाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-४ ॥ पैदल चलत बाटइ साथे मेहरारू। छोट भाई बाटै जैसन बीरवा लजारू॥ हमरि जान तोहार माई-बाप बाटै बाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-५ ॥ मनि जा तू बात इहीं कुटिया बनावइ। गाँव नर-नारिन कै इच्छा पुरावइ॥ गिरिधर के हिए बस इहै ठीक ठाउर। हे बेटवा रुकि जा दुई चारि दिन आउर॥ २-१९-६ ॥
(गीत बीस) [गुह इ उवाच-] शृंगबेरपुर राम शयन सुखदाई। भरत भैया चलइ तोहँके दिखाई॥ २-२०-१ ॥ दूर से देखात बाटेनि सातै अशोकवा। शीतल सुखद छाँह हरैं जन कइ शोकवा॥ इहीं रही राम कै चटैया बिछाई। भरत भैया चलइ तोहँके दिखाई॥ २-२०-२ ॥ सीयाजी की सारी कै परी बाटीं बुनियाँ। चौबीस अवतार कै इहै बाटीं गुनियाँ॥ इहीं रहीं सोइ सीया जेठ भौजाई। भरत भैया चलइ तोहँके दिखाई॥ २-२०-३ ॥ राति भरि जागेनि लाल लछिमन भैया। हाथ में धनुष बान हिए में रमैया॥ उहीं समय उनसे भई हमरो मिताई। भरत भैया चलइ तोहँके दिखाई॥ २-२०-३ ॥ राम सीय गुन गाइ राति हम बितावा। बार-बार पुलक गात नैन भरि आवा॥ गिरिधर हृदय प्रभु प्रीति न समाई। भरत भैया चलइ तोहँके दिखाई॥ २-२०-४ ॥
(गीत इक्कीस) [कौसल्या उवाच-] सब कै पुतोहू रहै कोठिया अटरिया हमारी सीता हे। छाए बाटिनि चित्रकुटिया हमारी सीता हे॥ २-२१-१ ॥ छोड़े राजमहल अपने पति संग सिधारी हमारी सीता हे। पकड़िनी जंगल कै बटिया हमारी सीता हे ॥ २-२१-२ ॥ भूँखिया पियसिया सहत कैसे होइहैं हमारी सीता हे। राजा जनक जी कै बिटिया हमारी सीता हे॥ २-२१-३ ॥ सीतीया बयरिया में दुख पावत होइहैं हमारी सीता हे। रचि के परन तृन कुटिया हमारी सीता हे ॥ २-२१-४ ॥ हम कब निहरबै नयन कै पुतरिया हमारी सीता हे। गिरिधर भजन कै बुटिया हमारी सीता हे॥ २-२१-५ ॥
(गीत बाईस) [कौसल्या उवाच-] रन लीला में जुगल निज खग शबरी उद्गार। गिरिधर प्रभु त्रिजटा बचन सुनि पुनि करिय विचार॥ [राघव जी जटायु से-] बिनती करैं राघव कढ़ाई के करनवाँ। जिनि जा हमके छोड़ि असहाय छोटका बाबू हो॥ २-२२-१ ॥ अबै थोरे दिन पहिले मिला दरसनवाँ। अवध सहस सम लाग घनघोर बनवाँ॥ सेवा से न तोहरे भरा अबई हमार मनवाँ। बीचवै में चल्यइ तू पराय छोटका बाबू हो॥ २-२२-२ ॥ सीता के हाँथ हाँथे से रीन्ही खिचर्यू न खायइ। कबहौं बहूरानी कहि के ओन्हें न बोलायइ॥ नेगवा में पेहलेइ दीह्यइ जीवन परनवाँ। हमके बिपति में बिहाइ छोटका बाबू हो॥ २-२२-३ ॥ सकुचन में हमर्यू बरतिया न आयइ। जनक जी से समधी के मिलना न पायइ॥ धरा बाटै तोहरि बड़की भौजी के भवनवाँ। लीहइ उनसे नेगवा गिनाइ छोटका बाबू हो॥ २-२२-४ ॥ राम कहि के कबहूँ न हमैं गोहरायइ। एकौ दिन हमसे न गोड़ मींजवायइ॥ चन्द्रहास चन्द्रहास राहु से रवनवाँ। ग्रसेसि तोहार पँखवा कटाइ छोटका बाबू हो॥ २-२२-५ ॥ दिब्य देह पाइ चलइ अवध कै नगरीया। रामराज सुख-भोगइ बैठि के अटरिया॥ गिरिधर प्रभु भरे जल जलज नयनवाँ। ना कहैं जटायू सिर हिलाइ छोटका बाबू हो॥ २-२२-६ ॥
(गीत तेईस) [जटायु उवाच-] सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-१ ॥ पुत्र के बियोग भैया दशरथ सिधारे। बधू के बियोग हम मरन निरधारे॥ दुनौं भाई बरन कीहा बिरह नीचि सरसी। सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-२ ॥ तेरहीं में हमरे फल बभनन जमायइ। बरखी में हमरी बिरादरी बुलायइ॥ मास निशाचरन कै परोस्यइ ही हरषी। सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-३ ॥ रावन जौनै भुजन पकरेसि सीता कर केषवा केशवा। ओहै भुजा बानन से काटि करि अबेशवा अबेषवा॥ कीहइ उहीं माँस से प्रभु हमार बरखीं बरखी। सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-४ ॥ बिजई तोहैं होब्यइ राघव जिनि रोवइ। घौवा हमार गरम आँसू से धोवइ॥ अँखियाँ भई सफल जौन आज तक तरसी। सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-५ ॥ धन्य होइ जटायु रामधाम में सिधाइन। गीध कै सराध कइके राघव जस पाऐनि॥ गिरिधर प्रभु पै प्रसून चले सुर बरसी। सुनइ राघव ललन तूं अहइ समदरशी॥ २-२३-६ ॥
(गीत चौबीस) [शबरी उवाच-] बहुत दिवस पाछे हमरी कुटिया में आयइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-१ ॥ हम तो अधम दीन अबला गँवारी। दीनानाथ तोहँईं बनाय महतारी॥ माई क नतवा कृपा करि निभायइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-२ ॥ बरिसन से तोहरी जोहत बाटी बटिया। तोहई बदे अजुवै बनावा नई कुटिया॥ हे अनाथ नाथ जिनि हमैं ठुकरायइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-३ ॥ तोहैं बदे धरे बाटी चार मीठी बैरिया। पलकें बिछाए बाटै बूढ़ी महतरिया॥ किरिया हमारी बा जो बेरिया लगायइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-४ ॥ आवइ खरि निवारि लइ पिरात होए मथवा। लरिका लखन बाटे थका तोहरे सथवा॥ गिरिधर के ईश बिरुद आपन बचायइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-५ ॥ कीहा न बियाह नहीं गए ससुरारी। तुहीं गोदी भरि दीहइ राघव खरारी॥ रावणारि हमैं महतारी कहि बुलायइ। हमार माछु छुय राघव आगे जो जायइ॥ २-२४-६ ॥
(गीत पच्चीस) [राघव उवाच हनुमान प्रति-] अंजना के बारे हो दुलारे पवन देवता के। सुन महाबीर हनुमान तनी हीन्ने आवइ॥ तोहीं बेटवा बाटइ हमरि लाज के बचैया हो। बाबा बजरंगी बलवान तनी हीन्ने आवइ॥ २-२५-१ ॥ कंचन बरन बाटै पियरि शरीरिया। इंद्रधनुष जैसन चमकैललकि लँगुरिया॥ तोहीं बचवा होइ जा हमरे नाव के खिवैया हो। अंजनि के नंदन सुजान तनी हीन्ने आवइ॥ २-२५-२ ॥ बिरह बिकल सीता दिन अरु रतिया। सौंपि के मुनरिया जुड़ावइ उनकर छतिया॥ तोहैं बबुवा होइ जा सीया शोक के हरैया हो। पवन-तनय मतिमान तनी हीन्ने आवइ॥ २-२५-३ ॥ लाँघि जा समुद्र मुँह मेलि के मुँदरिया। बिपत्ति में जरत बचावइ महतरिया॥ तोहैं भैया होइ जा रघुकुल कीरति बचैया हो। धीर महावीर गुनवान तनी हीन्ने आवइ॥ २-२५-४ ॥ जानकी जियत समाचार जो लियोब्यइ। हमरा से मुँह-माँगा बरदान पऊब्यइ॥ गिरिधर के प्रभु तोहरे हिय में बसैया हो। संकट मोचन हनुमान तनी हीन्ने आवइ॥ २-२५-५ ॥
(गीत छब्बीस) तुरते अइहैं राजा राम मन में धीरज धर बाम। भल होइहैं परिणाम त्रिजटा सीया के समुझावै॥ २-२६-१ ॥ सेतु सागर में तरु गिरि से बँधिहैं। रन में रावन सपरिजन बधिहैं॥ करिहैं भीषण संग्राम हरिहैं भव के घोर घाम। शुभ होइहैं परिणाम त्रिजटा सीया के समुझावै॥ २-२६-२ ॥ हनुमान आए लंका के जारे। रन में अक्ष राक्षसन संघारे॥ उनके हिय में बसे राम रूप शोभा अभिराम। मंगल होइहैं परिणाम त्रिजटा सीया के समुझावै॥ २-२६-३ ॥ भालु बानर सुभट संग में अइहैं। लंकाबासी करमफल पइहैं॥ मरिहैं जातुधान अघधाम होइहैं घमासान संग्राम। पइहैं पापन के परिणाम त्रिजटा सीया के समुझावै॥ २-२६-४ ॥ राम रावन के रन में मरिहैं। तोहे लेइके अवध पगु धरिहैं॥ सीता रानी राजा राम तैंतीस सहस बरिष गुनधाम। गिरिधर गाए लहैं विश्राम त्रिजटा सीया के समुझावै॥ २-२६-५ ॥
(गीत सत्ताईस) [कौसल्या उवाच-] लछिमन आपन नगर शिशु हमरो कबि उद्गार। गिरिधर प्रभु सुनि करहु तस नृपलीला बिस्तार॥ [लक्ष्मण उवाच-] लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥ २-२७-१ ॥ बहुत थका बाटइ रावन से करि-करि घोर समरिया। अरबन बार धनुष तानेसे होइहैं थकी अँगुरिया॥ कि मुरकी होइहैं कलेया हो। इहीं मिटावइ प्रभू थकैया संग में सीता मैया हो॥ २-२७-२ ॥ लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥ अंगद अरु हनुमान सहित हम करी चरन सेवकाई। पद पंकज छतिया पे धरि शकति्यु कर घाउ मिटाई॥ लहाई जीवन कमैया हो। लखि-लखि चरन कमल कै ललैया भगाइ दरिद ललैया हो॥ २-२७-२ ॥ लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥ बानर भालु पियैं नरियर जल खाईं चिकू अरु केरा। सागर तट पर उछरैं कूदैं केलि करैं तिहुँ बेरा॥ बिरावैं सुर अमरैया हो। सेवैं मलय पवन दखिनैया भुलावै रन कै चुटैया हो॥ २-२७-३ ॥ लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥ राम कहेनि सुनु लछिमन भैया लंका हमैं न भावै। भले अहै सोने कै नगरी तबउ न हमैं लुभावै॥ सहावै नरक ब्यथैया हो। काटैं जैसे बीछी सँपिनियाँ लंका कनक अथैया हो॥ २-२७-४ ॥ लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥ जननी जनमभूमि सरगेउ से बड़ी संत कबि गावै। कोटि-कोटि बैकुंठ से प्रिय मोहि अवध अधिक ललचावै॥ बुलावै सरजू मैया हो। एकउ छन न रहब लंकैया गिरिधर हृदय बसैया हो॥ २-२७-५ ॥ लछिमन कहेनि कि लंक में कुछु दिन रहि जा राघव भैया हो॥
(गीत अट्ठाईस) [राम उवाच-] हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ २-२८-१ ॥ सोन चिरैया जहाँ पराती सुनावै। अपूरब से पुरवैया छाती जुड़ावै। पावै पहिलेइ प्रकतिक दुलार भारत। हमरी अँखियऊ क तारा हमार भारत॥ २-२८-२ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ भानु करैं पहिली किरन से जेकरि पूजा। जेकरे समान जग में नाहीं कोउ दूजा। भब्य भूतल क अनघ अलंकार भारत। तीनों लोकन से न्यारा हमार भारत॥ २-२८-३ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ भ से भगवान आ से आदर रत से अनुराग। तीनों करी जनमि हमहूँ अश्वमेध जाग। हमरै अवतारन केर इ अगार भारत। जानकिउ क दुलारा हमार भारत॥ २-२८-४ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ वीरांगना जहाँ लड़के वीर विरुद पावैं। जहाँ कै तिया के अंग अगिनउ न जरावैं। उहै कर्मभूमि स्वर्गहूँ कै द्वार भारत। काटै जमराज कारा हमार भारत॥ २-२८-५ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ जहाँ नारी पतिब्रता पति हितकारी। एक नारी ब्रत जहाँ पुरुष उपकारी। जौन मरजादा शील सुख सार भारत। मेटै जग कै अँधियारा हमार भारत॥ २-२८-६ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥ माटी में जेकरि प्रगट भई भईं सीता। गाउब हमहूँ जहाँ गिरिधर बनि के गीता। बेद धर्म श्रुति संस्कृति आधार भारत। संतजन के सहारा हमार भारत॥ २-२८-७ ॥ हमरे प्राणन से प्यारा हमार भारत॥
(गीत उन्तीस) [अवध पुत्रवधू उवाच-] पूछैं पतोहू कब सोन दिवस अइहैं। बतावइ अइया सियाराम कब अइहैं॥ २-२९-१ ॥ जब से बिपिन गई गईं सीता जेठानी। तब से न खाए न पीया जूड़ पानी। बिधना बिपतिया हमारी कब खोइहैं। बतावइ अइया सियाराम कब अइहैं॥ २-२९-२ ॥ लरिकऊ न खेलैंन जुवक करैं भोगवा। सब के लाग बाटै राम के बियोग रोगवा। लोगवा अजोधिया के कब सुख से सोइहैं। बतावइ अइया सियाराम कब अइहैं॥ २-२९-३ ॥ सीताराम लखन धरे बन की डगरिया। देखि रोवा छाती पीटी बैठि के अँटरिया। तीनौं जन के देखि कब नयन फल पइहैं। बतावइ अइया सियाराम कब अइहैं॥ २-२९-४ ॥ एकै दिन अब रहा अवधि क अधरवा। राम बिना चरफरात बाटै अब जियरा। कब निहारि राघव के गिरिधर गीत गइहैं। बतावइ अइया सियाराम कब अइहैं॥ २-२९-५ ॥
(गीत तीस) [कौसल्या उवाच-] कैसे मारेनि रवनवाँ के मोर राघव। कैसे जीतेनि लंक-रनवाँ के मोर राघव॥ २-३०-१ ॥ कोमल मृनालौ से बाटै इनकार बहियाँ। कैसे चढ़ावत होइहैं झटपट धनुहियाँ। कैसे कीहे होइहैं संजुग कठोर राघव॥ २-३०-२ ॥ कैसे मारेनि रवनवाँ के मोर राघव॥ सँझवैं के चढ़ै इनकी आँखिन निदरिया। निशिचर तो करैं साँझ बेरै समरिया। कैसे कीहे होइहैं जुद्ध अति घोर राघव॥ २-३०-३ ॥ कैसे मारेनि रवनवाँ के मोर राघव॥ सहज सुकुमार रामभद्र कै सरीरिया। गरजैं निशाचर जैसे कारी बदरिया। कैसे हेरे होइहैं लोचन के कोर राघव॥ २-३०-४ ॥ कैसे मारेनि रवनवाँ के मोर राघव॥ महाबली रावन मायावी निशाचर। गिरिधर के प्रभु राम कोकर निशाकर। कैसे पाए होइहैं पार अहि से मोर राघव॥ २-३०-५ ॥ कैसे मारेनि रवनवाँ के मोर राघव॥
(गीत इकतीस) कबि उवाच- अवधी अँजोरिया क अजोर हो। अवध के राम राजा बने॥ २-३१-१ ॥ महाराज राम बनी सीता महारानी। आनंद में उमगी अवध राजधानी। तीनों लोक मचा हँड़होर हो। अवध के राम राजा बने॥ २-३१-२ ॥ भरत लिए छत्र चामर लछिमन सुहाए शत्रुहन ब्यजन लिए हँसि-हँसि डोलाए। हनूमान भाव में विभोर हो। अवध के राम राजा बने॥ २-३१-३ ॥ बरसैं प्रसून देव दुंदुभी बजावैं। नाचैं गावैं नर-नारी जन्म फल पावैं। आनंद पयोधि चहुँ ओर हो। अवध के राम राजा बने॥ २-३१-४ ॥ परम प्रसन्न आज अवध नगरिया। लहइ लहइ लहि रही अवधी अँजोरिया। गिरिधर चितवै चकोर हो। अवध के राम राजा बने॥ २-३१-५ ॥
॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ दूसरी किरन सम्पूरन ॥