तीसरी किरन


॥ नमो राघवाय ॥ ॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ तीसरी किरन ॥

(गीत एक) जननि बचन सुनि राम प्रभु तुरत बने शुभ बाल। बड़कू से छोटकू भए गिरिधर हृदय रसाल॥ छोटे-छोट चरन सरोज अँगूरी सोहे छोटी-छोटी हो। हरि-हरि मूँगवा के सम्पुरट सम्पुट में मानो मंगल दश राजत हो॥ ३-१-१ ॥ छोटे-छोटे गुलफ सुहाए प्रपद सोहैं छोटे-छोटे हो। जैसे अरुन की सुंदर अथाई जमुना जुग सोहति हो॥ ३-१-२ ॥ छोटे-छोटे घुटरुन सुंदर अरु सोहे छोटे-छोटे हो। हरि-हरि छोटी-छोटी पियरि कछनिया मनहुँ शिशु दिनकर हो ॥ ३-१-३ ॥ छोटे-छोटी नाभि मन भावनी छोटो-छोटो नार लसै हो। जहाँ पहिले बिधातहुँ जनमेनि जग के पितामह हो॥ ३-१-४ ॥ छोटी-छोटी छतिया सुहावनी बिप्र पद छोटो लसै हो। जैसे नीलगिरि उपर बिराजत पियरि सुरुज रेखा हो॥ ३-१-५ ॥ छोटे-छोटे चारु कर पंकज अँगुरी लसति छोटी हो। जथा मंगल हृदय अति सुंदर कंज नाल सोहत हो॥ ३-१-६ ॥ अरुन अधर लसै छोटो-छोटो बिधुमुख छोटो लसै हौ। हरि-हरि छोटे-छोटे खंजन नयनवाँ श्रमन जुग छोटे-छोटे हो॥ ३-१-७ ॥ छोटी-छोटी भल पे तिलकिया अलकिया लसै छोटी-छोटी हो। हरि-हरि गिरिधर मति अति छोटी निहारे प्रभु छोटे-छोटे हो॥ ३-१-८ ॥

(गीत दो) हमारी गोद ब्रह्म राम राघव पधारेनि॥ ३-२-१ ॥ गोद ले कौसल्या प्रभु के हलरावैं। चूमि-चूमि झूमि-झूमि बाल गीत गावैं। हमारी गोद सुख धाम राघव पधारेनि॥ ३-२-२ ॥ बड़ी बीते बयस कृपा कै प्रभु आएनि। बझिनि कै हमरऊ कलंकवा मिटाएनि। हमारी गोद घनश्याम राघव पधारेनि॥ ३-२-३ ॥ इनके नयनवाँ कै पुतरी बनउबई। अँचरे चोराइ थन दुधवा पियउवई। हमारी गोद गुनधाम राघव पधारेनि॥ ३-२-४ ॥ अँखिया से ओझल कबहुँ नहिं करबै। गिरिधर प्रभु पै हम राइ-लोन वरबै। हमारी गोद अभिराम राघव पधारेनि॥ ३-२-५ ॥

(गीत तीन) केहाँ-केहाँ करी प्रभु रोएनि जग दुख धोएनि हो। राघव मंगलमय अवतार भुवन भरा सोहर हो॥ ३-३-१ ॥ निरखि के साँवरि मूरतिया कौसल्या रानी नाचिनि हो। राघव अँचरा में ढाँकि के पियाँएनि थन पय सुंदर हो॥ ३-३-२ ॥ चूमि चुचुकारि के दुलारहिं राइ-लोन वारहिं हो। जैसे अलवाँति गाइ आपन बछरू ललकि चूमि-चाटै हो॥ ३-३-३ ॥ झुकि-झुकि झाँकि-झाँकि निरखहिं राम मुख पंकज हो। रानी आनंद सिंधु अवगाहहिं पारौ न पावहिं हो॥ ३-३-४ ॥ गिरिधर प्रभुहिं निहारहिं तन मन वारहिं हो। रानी ईश गनेश निहोरहिं अरु तृन तोरहिं हो॥ ३-३-५ ॥

(गीत चार) सुनि शिशु रुदन सुहावन अति मन भावन हो। हरि-हरि अग जग शोक नसावन माता सुख पाएनि हो॥ ३-४-१ ॥ सात सै जननी निज मंदिर सुनी राम रोदन हो। मानो उर बिच उमगा आनँद अमिय सिंधु पावन हो॥ ३-४-२ ॥ जैसै रहीं तैसे उठि धाइनी दासियु न बुलाइनि हो। केहु पलकिउ न पास में मँगाएनि पग से सिधाएनि हो॥ ३-४-३ ॥ चलीं सब ईश मनावत नाचत गावत हो। रानी थन पै धार चुवावत पथ सुख पावत हो॥ ३-४-४ ॥ सात सै जननी अति सुंदरी कौसिला भवन आईं हो। देखि राघव की साँवरि मूरतिया नयन फल पाएनि हो॥ ३-४-५ ॥ चूमि-चूमि चाटि चुचकारिनि सरबस वारिनि हो। देखि गिरिधर प्रभु मुखचंद्र निमेष न निवारिनि हो॥ ३-४-६ ॥

(गीत पाँच) अग-जग चराचर नायक जन सुखदायक हो। राघव टारन भुवन के भार अवधपुर प्रगटेनि हो॥ ३-५-१ ॥ कौसिला के अँचरे बिराजत अति छबि छाजत हो। जैसे गंग-धार बीच में बदरिया निरखिं मन ललचत हो॥ ३-५-२ ॥ रानी सब एकटक निरखहिं हिए अति हरषहीं हो। हरि-हरि देखि प्रभु सुषमा सुहाई सुमन सुर बरसहीं हो॥ ३-५-३ ॥ दासी सब हरषित धाइनि प्रभु पहँ आइनि हो। देखि अनुपम बाल स्वरूप नयन फल पाइनि हो॥ ३-५-४ ॥ कोरवाँ में लेइके अगोरहिं उमगि अकोरहिं हो। दासी लखि-लखि हरि तृन तोरहीं शिवहिं निहोरहिं हो॥ ३-५-५ ॥ एकटक प्रभु के निहारहिं बनी कठपूतरि हो। दासी गिरिधर प्रभु मुखचंद बनी गईं चकोरिनी हो॥ ३-५-६ ॥

(गीत छ:) अवध के कनक सिंहासन बैठे चक्रवर्ती राजा हो। आजु आई चैत शुक्ल पक्ष नौमी मनहिं मन सोचहिं हो॥ ३-६-१ ॥ गुरु संध्या करन पधारे मंत्रिन गृह सिधारेनि हो। राजा बैठे अकेल दुपहरिया बिलोकि के बिसूरहिं हो॥ ३-६-२ ॥ बारहों महीना आज पूरन गरभ कर होइगा हरि हो। अब कौसिला की कोखि प्रभु प्रगटइ गहरु जनि लावहु हो॥ ३-६-३ ॥ आवइ साकेत के बिहारी भगत भयहारी हरि हो। मोरि तोहरे बिना अँखिया तरसै सतत नीर बरसै हो॥ ३-६-४ ॥ साठ हजार बरिस बीते बिरिध होइगा मोर तन हो। अब श्रीहरि जिनि तरसावइ झटिति गोदिया आवहु हो॥ ३-६-५ ॥ तोहैं भरि नैन निहारि के जनम फल पाउब हो। तोहरी शोभा पे सरबस वारि के सोनवा लुटाउब हो॥ ३-६-६ ॥ आवइ-आवइ हे दीनानाथ प्रनत भय-भंजन हो। अब दशरथ होई (? होईं) सनाथ सोहर गावैं गिरिधर हो॥ ३-६-७ ॥

(गीत सात) दशरथ हरि के निहोरहिं दुहु कर जोरहिं हो। राजा पूरब जनम बिचारि मनहिं मन पुलकहिं हो॥ ३-७-१ ॥ स्वायम्भुव मनु तनु धारेरहेनि शतरूपा संग हो। हम माना रघुनाथ अनुशासन कीहा शुभ शासन हो॥ ३-७-२ ॥ बिधि के दाहिन नाक छेद से बाराह आदि प्रगटेनि हो। हरि-हरि बनि के हमार लघु भाई धरनि के उधारेनि हो॥ ३-७-३ ॥ जग्य भगवान लीहा गोद कपिल बने नाती मोर हो। प्रभुदत्त औ नारायन पर नाती सकल जग मंगल हो ॥ ३-७-४ ॥ हम देखा पौत्र ध्रुव पास हरि शंख गाल चूमत हो। हमरे बंशै में पृथु अवतार पृथुल जस पावन हो॥ ३-७-५ ॥ हमरे छोटे पूत प्रियव्रत वंश में ऋषभ पधारेनि हो। लैके पारमहंस संन्यास जगत के उधारेनि हो॥ ३-७-६ ॥ हम आठ अवतारन क साक्षी तबहु मन नाही भरा हो। हम तो अवतारन अवतारी के बेटवा बनाउब हो॥ ३-७-७ ॥ इहै सोचि शतरूपा संग लिए नैमिष में तप कीहा हो। पावा आपै से दश बरदान दशहुँ दिशि मंगल हो॥ ३-७-८ ॥ तोहैं बदे बने हम दशरथ शतरूपा कौसल्या बनी हो। अब आयइ बड़ी रानी जी के गरभ सपदि अब प्रगटहु हो॥ ३-७-९ ॥ इहिं छन रामलला प्रगटि केहैं कि करि रोएनि हो। राजा दशरथ सुनि शिशु रुदन जनम फल पाएनि हो॥ ३-७-१० ॥ स्वर से गएनि पहिचानी उहै राम प्रगटेनि हो। जिन से हम मनु पावा बरदान अवध उहै आएनि हो॥ ३-७-११ ॥ जिन कर नाम सुनि मंगल उहै मोर पूत बने हो। जब रामलला गोद लै खिलाउब सोहर गिरिधर गैहैं हो॥ ३-७-१२ ॥

(गीत आठ) तेहिं छन दाई सुनंदा निरखि रघुनंदन हो। राघव नख षिख सुभग शरीर मदन मन मोहन हो॥ ३-८-१ ॥ एकटक देखै लागीं दाई निमिष न निवारहिं हो। हरि-हरि हरषि हिय हेरहिं तनु न सम्हारहिं हो ॥ ३-८-२ ॥ बड़कू से बनि गए छोटकू तपन कुल भूषन हो। हरि-हरि प्रभु मुख चूमि चुचुकारहिं गोद लै दुलारहिं हो॥ ३-८-३ ॥ मन के सम्हारि के सुनंदा दाई शिशु दै कौसल्या जी के हो। हरि-हरि हरषी हृदय लागीं दौंरे पवँरि नृप के पहुँचिनि हो ॥ ३-८-४ ॥ प्रतिहारी ठेलि के सुनंदा मौसी लखि राजा दशरथ हो। बोलीं श्रवन सुधा सम बैन नयन करि ससलिल हो॥ ३-८-५ ॥ धनी धनी धनी बाटइ दशरथ धनी तोहरा पुन्य बाटै हो। आजु स्वामी त्रिलोकी क तोहार तनय बनि सोहत हो॥ ३-८-६ ॥ जेहिं लागी जोगी मुनि जप करैं जती जन तप करैं हो। सोइ अवध में आजु भए प्रगट सोहर गावैं गिरिधर हो॥ ३-८-७ ॥

(गीत नौ) रामलला अवध आजु प्रगटेनि बजनिया भैया बाजा बजावइ॥ ३-९-१ ॥ कूदि के सिंघासन से राजा निहोरैं। देवता बजनियन से हाथ जुग जोरैं। दिव्य दुंदुभी बजवावइ बजनिया भैया बाजा बजावइ॥ ३-९-२ ॥ प्रह्‌लाद भैया आपन तलिया सम्हारैं। उद्धव कृपा कै मंजीरा झनकारैं। नारद दिव्य बीना सुनावइ बजनिया भैया बाजा बजावइ॥ ३-९-३ ॥ स्वर क संधान करइ अर्जुन दया से। जै-जै सनकादि कहैं करुणामया से। इन्द्र तूं पखाउज पे आवइ बजनिया भैया बाजा बजावइ॥ ३-९-४ ॥ शुक्राचार्य करैं दिब्य गीतन कै रचना। सब जनैं करइ आज राम कै समर्चना। गिरिधर गिरा में गीत गावइ बजनिया भैया बाजा बजावइ॥ ३-९-५ ॥

(गीत दस) आजु प्रगटे अवध भगवान बुलाऊँ ज्ञानी गुरुवर के॥ ३-१०-१ ॥ राजा दशरथ कर पूरन मनोरथ। लीहेनि पकरि झट गुरुवर के गृह पथ। आजु प्रगटे करुनानिधान बुलाऊँ ज्ञानी गुरुवर के॥ ३-१०-२ ॥ बिनु पनहीं न गुरु कुटिया पधारेनि। संध्या करत गुरुदेव के निहारेनि। नृप भूलि गे सहज अपान बुलाऊँ ज्ञानी गुरुवर के॥ ३-१०-३ ॥ चरनकमल गहि बिनती प्रनाम करि। कीहेनि निवेदन नृपति उर धीर धरि। कृपा आपकी भए हम पूतवान बुलाऊँ ज्ञानी गुरुवर के॥ ३-१०-४ ॥ कौसिला जनम दीहिनि सुतन मनोहर। चलैं आप देखै शिशु शुचि सुषमाकर। करैं गिरिधर गिरा से मंगल गान बुलाऊँ ज्ञानी गुरुवर के॥ ३-१०-५ ॥

(गीत ग्यारह) धनि-धनि नगरी अजोधिया औ धनि राजा दशरथ हो। राघव धनि रे कौसल्या जी कै कोख जहाँ प्रभु प्रगटेनि हो॥ ३-११-१ ॥ धनि-धनि सरजू की धारा औ कोसल धनि-धनि हो। राघव धनि राम जन्मस्थान जहाँ प्रभु जन्मेनि हो॥ ३-११-२ ॥ धनि-धनि मास मधुमास बसंत रितु धनि-धनि हो। राघव धनि-धनि चैत शुक्ल नौमी जहाँ राम अवतरे हो॥ ३-११-३ ॥ धनि-धनि-धनि दिन मंगल त्रिभुवन मंगल हो। राघव धनि-धनि अभिजित मुहुरत जहाँ हरि प्रगटेनि हो॥ ३-११-४ ॥ धनि-धनि नखत पुनर्बसु रामभक्त सरबसु हो। राघव धनि बेदसागर जोग प्रभु के जन्मदायक हो॥ ३-११-५ ॥ धनि-धनि करक सुलगन लगन कुलभूषन हो। राघव धनि लग्नेश बृहस्पतिसुर गुरु शुभ मति हो॥ ३-११-६ ॥ धनि-धनि सुरुज नरायन धनि-धनि सूर्यकुल हो। राघव धनि-धनि-धनि रघुबंश जहाँ हरि प्रगटेनि हो॥ ३-११-७ ॥ धनि-धनि अवध निवासी जे त्रेता जुग जन्मेनि हो। राघव धनि-धनि गिरिधर बानी जो सोहर गवति हो॥ ३-११-८ ॥

(गीत बारह) आए दशरथ सहित गुरुदेव निहारन रामलला॥ ३-१२-१ ॥ आनँद उमगि मन प्रेम से पुलकि तन। गदगद बचन गुरुदेव निहारन रामलला॥ ३-१२-२ ॥ कौसिला की गोद प्रभुराम के बिलोकैं। मोद में मगन गुरुदेव निहारन रामलला॥ ३-१२-३ ॥ लै उछंग दुलरावैं हरि हलरावैं। सजल नयन गुरुदेव निहारन रामलला॥ ३-१२-४ ॥ चूमि-चूमि चुचकारैं निमिषौ न टारैं। गिरिधर धन गुरुदेव निहारन रामलला॥ ३-१२-५ ॥

(गीत तेरह) गुरुमाता अरुंधती आईं दुलारैं रामलला॥ ३-१३-१ ॥ आँचर में ढाँकि चुचुकारि हलरावैं। राघव के बार-बार थन पय पियावैं। जैसे अंलवाती गाय हुँकराय दुलारैं रामलला॥ ३-१३-२ ॥ जब गुरुमाता रामलला के निहारिनि। निज शत पुत्रमरन शोकवा बिसारिनि। चूमि चाटै जैसे सुरभि लवाय दुलारैं रामलला॥ ३-१३-३ ॥ झूमि-झूमि प्रभु बिधु आनन बिलोकैं। मंगल बिचारि नैन नीर हठि रोकैं। लखि गिरिधर कै प्रीति न समाय दुलारैं रामलला॥ ३-१३-४ ॥

(गीत चौदह) रामला औध में प्रगट भए सुजन निकट भए हो। लखि के नाचैं गावैं सखिया सयानी औ सात सै नृपति रानी हो॥ ३-१४-१ ॥ सहसा सुनंदा दाई उदास भईं निपट निराश भईं हो। सुधि आइ आजु आजि इंदुमती करि इंदुमुख कुम्हलान हो॥ ३-१४-२ ॥ आजु इंदुमती आजी होतीं लुटौतीं सोना मोति उ हो। हरि-हरि छकड़न रतन लुटौतीं निरखि नाती सुंदर हो॥ ३-१४-३ ॥ राजा दशरथ के बेमौर अटका रानी सब रोवैं लागी हो। सुनिके सुनंदा बचन अरुंधती माता धीरज बँधानिनि हो॥ ३-१४-४ ॥ चितइ अकास में अरुंधती अँगुरी ईशारा करैं हो। आवइ-आवइ रानी इंदुमति अवध निहारइ नाती सुंदर हो॥ ३-१४-५ ॥ तुरतै प्रगटीं आजी इंदुमती महाराजा अज संग हो। गिरिधर प्रभु के उठाइ गोद नाचैं सोहर गीत गावैं हो॥ ३-१४-६ ॥

(गीत पन्द्रह) बोलीं इन्दुमती रानी कौसिला से सुनु बहू सुंदरी हो। तूं तो हमहूँ सहित रघुबंश के आजु धन्य करि दीह्यो हो॥ ३-१५-१ ॥ धनि-धनि रानी तोहार कोखि जठर तोहर धनि-धनि हो। जहाँ बारइ मास रहे भगवान पुरान पुरुषोत्तम हो॥ ३-१५-२ ॥ जेकरा के जोगी मुनि हयावैं दरस नहिं पावहिं हो। सोइ रामलला दूधवा तोहार चुमुर-चुमुर पीवहिं हो॥ ३-१५-३ ॥ एन्हई जिनि मनुज बिचारेउ कबहूँ न तूकारिहू हो। एन्हई दूबिइ कइ सुटकुनिया जिनि मारियु पुतरि करि राखेहू हो॥ ३-१५-४ ॥ बहू के सिखाइ माता इंदुमती राजा के बोलाएनि हो। कहि दशरथ गोदी में बिठाइ अंसुवन से नहवाइनि हो॥ ३-१५-५ ॥ सुनइ-सुनइ बेटा राजा दशरथ धनि बा तोहार भाग हो। तोहरि गोदीया में अब तो प्रभु राम छगन-मगन खेलिहैं हो॥ ३-१५-६ ॥ सुत बिषइक प्रभु पद रति करि सुख पावहु हो। गिरिधर प्रभु के दुलारि निहारि के भगति बढ़ावहु हो॥ ३-१५-७ ॥

(गीत सोलह) आजी इंदुमती रामलला जी के आजा आज की गोद दीहिनि हो। राजा आज आजा बनके तू नतिया अनूपम खेलावहु हो॥ ३-१६-१ ॥ जे रहेनि तोहार पहिले आजा उहै आज नाती बनेनि हो। आजु छतिया कै दहीया बुतावइ औ नाती खेलावहु हो॥ ३-१६-२ ॥ तू तो अह्यइ बिधि के अवतार तोहार आजा रामचंद्र हो। बिष्णु रामजी क अंश जग जानै तू बिष्णु जी क बेटा रहै हो॥ ३-१६-३ ॥ बिधि बश आजु बिपरीत होइगा ब्रह्मा राजा अज बने हो। राजा अज के सुपूत राजा दशरथ राम उनकर पूत बने हो॥ ३-१६-४ ॥ आज नाती शब्द चरितारथ महाराज देख लीहै हो। जहाँ केथवौ केथूवौ कइ अति नहिं होइ उहीं के सब नाती कहैं हो॥ ३-१६-५ ॥ रामजी के गुणन कइ अति नाहीं चरितन कइ अति नाहीं हो। राजा रामजी की लीलन कै अति नाहीं रूपहुँ कइ अति नाहीं हो॥ ३-१६-६ ॥ राघव के धामन कै अति नाहीं नामन कै अति नाहीं हो। राजा रामचन्द्र नाती सनातन तू उनहीं कर आजा बन्यइ हो॥ ३-१६-७ ॥ धरि धीर प्रभु के निहारहु आरती उतारहु हो। राजा अपने ही मानस मंदिर प्रभु के दुलारहु हो॥ ३-१६-८ ॥ इतनी बचन सुनि राजा अज राघव के गोद लीहेनि हो। लखि गिरिधर प्रभु तनु शोभा भगति में बिभोर भएँ हो॥ ३-१६-९ ॥

(गीत सत्तरह) राजा अज रामलला के निहारैं पलकीया पलक नहिं पारैं॥ ३-१७-१ ॥ गोद लिए मोद भरे राघव ललनवाँ। मुदित झुलावत पलक के पलनवाँ। शोभा पर सरबस वारैं पलकीया पलक नहिं पारैं॥ ३-१७-२ ॥ बार-बार आजा आज प्रभु मुख चूमैं। बत्सल सनेह की समधिया में झूमैं। तन-मन सुरति बिसारैं पलकीया पलक नहिं पारैं॥ ३-१७-३ ॥ नाती बना आजा औ आजा बने नाती। प्रीति की बिचित्र रीति कही नहीं जाती। मगन सनेह में सम्हारैं पलकीया पलक नहिं पारैं॥ ३-१७-४ ॥ गोद लिए रामलला हेतु हलरावैं। आजा अज दुलराइ गाइ के मन्हावैं। गिरिधर मंगल उचारैं पलकीया पलक नहिं पारैं॥ ३-१७-५ ॥

(गीत अट्ठारह) एहि छन आइ के बसिष्ठ मुनि रामलला गोद लिए हो। रूप राचैं नाचैं साचैं सांची भगति नयन मुख कंज दिए हो॥ ३-१८-१ ॥ उमगत प्रेम क प्रबाह नयन जल रोकि राखे हो। जानि मंगल मंगल-मूरति जय-जय कहि भाखे हो॥ ३-१८-२ ॥ मुनिराज मन में बिसूरत बिधिहिं निहोरत हो। आजु धनि-धनि जनम हमार अवध क पुरोहित हो॥ ३-१८-३ ॥ पहिले त रहे नहियावत रघुकुल पुरोहिती हो। बिधि आज पुरैनी आस निहारा हम राघव जी के हो॥ ३-१८-४ ॥ जेहिं लागी जोगी जप तप करैं लीन होय समाधी में हो। सोइ दशरथ गृह बने बालकअग जग पालक हो॥ ३-१८-५ ॥ इनकर पंद्रह संस्कार हमहिं करवाउब हो। गिरिधर प्रभु से अनेक दक्षिणा मन भरि पाउब हो॥ ३-१८-६ ॥

(गीत उन्नीस) हमरे चित के चोराएनि रामलला॥ ३-१९-१ ॥ ब्यापक ब्रह्म निरीह निरंजन। प्रगटे अवध कलित दृग अंजन। हमरे मनवाँ के भाएनि रामलला॥ ३-१९-२ ॥ तरुन तमाल शरीर सुहावन। आनन शरद शशांक लजावन। कोटि काम के लजाएनि रामलला॥ ३-१९-३ ॥ कमल बदन पर लटके अलकिया। खंजन नयन लसे ललित पलकिया। तन मन बिसराएनि रामलला॥ ३-१९-४ ॥ ठुमुकि-ठुमुकि लाल चलिहैं बकैंया। छहरैहैं छबि घर अँगना अथैयाँ। मुनि हिय ललचाएनि रामलला॥ ३-१९-५ ॥ हमरेउ आश्रम पढ़न प्रभु अइहैं। गुरुवर कह हँसि मोहि बोलइहैं। गिरिधर नयन लुभाएनि रामलला॥ ३-१९-६ ॥

(गीत बीस) एइसन बालक हम कतहूँ न देखा हे रघुनंदन ललना। लाजैं लखि कोटि-कोटि मार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-१ ॥ कौसिला के भाग पर तरसैं इंदिरानी हे रघुनंदन ललना। जहाँ प्रगटे हरि-सगुन साकार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-२ ॥ छोटे-छोटे चरन सरोज अति सोहैं हे रघुनंदन ललना। छोटे करकंज अरुनार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-३ ॥ लघु मुखकंज पर लरिया बिराजे हे रघुनंदन ललना। इंदु पर मनहु तुषार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-४ ॥ चिक्कन कपोल नासा भृकुटि मनोहर हे रघुनंदन ललना। खंजन नयन कजरार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-५ ॥ गोद लै खेलावैं गुरु मन के रमावैं हे रघुनंदन ललना। गिरिधर छबि देखि बलिहार हे रघुनंदन ललना॥ ३-२०-६ ॥

(गीत इक्कीस) देखइ अरुंधती धरि-धरि ध्यान अनूपम रामलला॥ ३-२१-१ ॥ नख शिख सुभग नील नीरद तनु। देखि भूलि जात सबहिं अपान अनूपम रामलला॥ ३-२१-२ ॥ अइसन अचरज कछु कहि नहिं आवै। जैसे गूँगे को अमरित पान अनूपम रामलला॥ ३-२१-३ ॥ अद्भुत बाल मराल निहारौं। प्राकृत शिशु न समान अनूपम रामलला॥ ३-२१-४ ॥ जनम काल कै दिखै न अशुचिता। कौसिला सब गुन खानि अनूपम रामलला॥ ३-२१-५ ॥ कोटि-कोटि तीरथ पति शुचिता। पाई जन्म-स्थान अनूपम रामलला॥ ३-२१-६ ॥ गंग कोटि सम लगति कौसिला। गोद लिए भगवान अनूपम रामलला॥ ३-२१-७ ॥ रामलला अवलोकत बारत। गिरिधर तन मन प्रान अनूपम रामलला॥ ३-२१-८ ॥

(गीत बाईस) सोहर सब दिन नोहर श्रवन मनोहर हो। आजु गायैं सब सुर नर-नारी प्रगट भए रघुबर हो॥ ३-२२-१ ॥ उमा हर सहित बिराजत अनूपम सोहर हो। राम जनम पे प्रथम गवाँइ सुखद सुषमाकर हो॥ ३-२२-२ ॥ उ का अर्थ उमा हर क शंकर ताभ्यां सह वर्तमानो हो। इहै सोहर शबद ब्युतपत्ति बिपत्ति सकल हरे हो॥ ३-२२-३ ॥ ( उश्च हरश्च उहरौ उहराभ्यां सह वर्तमान: सोहर:।) सबसे पहले लक्ष्मी जी कढ़ावैं सावित्री दुहरावैं हो। हरि-हरि माता पार्वती तेहरावें बिदित जग सोहर हो॥ ३-२२-४ ॥ गावैं इंदिरानी बरुणानी सर्वाणि पार्वती समुझावैं हो। गावैं अरुंधती आर्चाणी बानी औ रानी नौकरानी सब हो॥ ३-२२-५ ॥ रामजनम के महोत्सव सोहर गवाइ रहे हो। हरि-हरि गिरिधर प्रभु लखि गुरुदेव अति सुख पाइ रहे हो॥ ३-२२-६ ॥

(गीत तेईस) सबसे पहिले लक्ष्मी जी कढ़ाऐनि साबित्री दुहराएनि हो। माता पार्बती हँसि तेहराइन तिहुँ आखर सोहर हो॥ ३-२३-१ ॥ बोलीं लक्ष्मीं धनि-धनि कौसल्या रानी आजु जग जीत लीहु हो। तू त ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अंशी के बेटवा बनायु हो॥ ३-२३-२ ॥ हम अहि बिष्णुजी के पत्नी बिष्णु क अंशी रामचन्द्र हो। याते रामलला ससुर हमार उन्हैं तू प्रगटाइहू हो॥ ३-२३-३ ॥ रावन के इहाँ धान कूटत कलई मुरकि गई हो। हमरे दुनौं हाथे बड़ा-बड़ा झलका दिवस राति ब्यथा देइ हो॥ ३-२३-४ ॥ हम अहि काम केरि माता शिवजी ओके बारेनि हो। तू त रामजी के माता जेके शिवजी हृदय में विहारेनि हो॥ ३-२३-५ ॥ हमर कुपूतवा कुलायक सब जग जानत हो। तोहार रामजी सुपूतवा सुलायक जगत बखानत हो॥ ३-२३-६ ॥ रामजी के देखि मन थिर होइगा अँखिया जुड़ाइ गई हो। मन में होइगा भरोसा दृढ़ मोर भगत उर आइ गई हो॥ ३-२३-७ ॥ अब तो किछुवै बरिस बीते राम रावन के संहरिहैं हो। गिरिधर प्रभु के प्रताप औ कीरति जगत उच्चरिहैं हो॥ ३-२३-८ ॥

(गीत चौबीस) बोलीं माता सावित्री बिहँसि के बचन अति सुंदर हो। धनि रानी कौसिल्या तोर भाग निगम नेति गावइ हो॥ ३-२४-१ ॥ ब्रह्मा जी कै हम गृहभामिनी ब्रह्मा पूत विष्णुकर हो। विष्णु रघुनाथ रामजी के अंश बिदित बेद जानत हो॥ ३-२४-२ ॥ हमरे ससुर के पिता के तूं आजु प्रगटाइहु हो। रानी धनि-धनि कोखिया तोहारि सुजस जग पावऊँ हो॥ ३-२४-३ ॥ बिधि बर दीहेनि दशानन के केऊ न ओके मारि सकै हो। एक सत्यसंध राम-रघुनाथ रावन के संघारि सकै हो॥ ३-२४-४ ॥ धीर धरिइ धीर धरइ बड़ी रानी राम लंका चढ़िहैं हो। गिरिधर प्रभु कटिहैं रावन के शीष सुजस नारद गइहैं हो॥ ३-२४-५ ॥

(गीत पच्चीस) बोलीं पारबती दुलराइ के धनि रे कौसल्या रानी हो। धनि-धनि चक्रबर्ती राजा दशरथ राम जहाँ प्रगटेनि हो॥ ३-२५-१ ॥ जिनकर नाम के प्रथम आखर शिव काम जारेनि हो। देखि रेफ केर मूर्धा स्थान उहै आगि मूर्धा धरिनि हो॥ ३-२५-२ ॥ नित हम दुनौं परानी काशी में राम नाम जपि हो। शिवजी राम नाम जप के प्रताप काशी में सबके मुक्त करैं हो॥ ३-२५-३ ॥ हमरे आराध्य के तू जन्म दीह्यू पूतवा बनाइ लीह्यू हो। रानी छगन-मगन करि रामजी के जग-जस जीत लीह्यू हो॥ ३-२५-४ ॥ हम तो तोहार गृह नित रहिं रामलला सेउब हो। रानी गिरिधर प्रभु के निहारि परम सुख लूटब हो॥ ३-२५-५ ॥

(गीत छब्बीस) कहैं अरुंधती सब कै पुकारि बधाई अब बजवाओ॥ ३-२६-१ ॥ रामलला कर जनम महोत्सव। मुदित मनाओ राजा मिटै पराभव। लुटवाओ हीरा-मोती प्रचार बधाई अब बजवाओ॥ ३-२६-२ ॥ सात सै प्रभु माता अब नाचो गाओ। मनि गन लुटवाओ बिप्र जिमाओ। बँचवाओ बेदी बिरुद बिचारि बधाई अब बजवाओ॥ ३-२६-३ ॥ गली-गली मोतियन चौक पुराओ। सब मिलि द्वार-द्वार तोरन सजाओ। अब गाओ सुख सोहर उचारि बधाई अब बजवाओ॥ ३-२६-४ ॥ राजा स्वस्तिवाक हित भुसूर बुलाओ। जात कर्म करो अब गहरू न लाओ। गिरिधर सुख पाओ सरबस वारि बधाई अब बजवाओ॥ ३-२६-५ ॥

(गीत सत्ताईस) आजु पहिला रामलला क नहावन बा। इ दिवसवा सुहावन पावन बा॥ ३-२७-१ ॥ पहिला नहावन लक्ष्मी जी करावैं। क्षीरसागर क्षीर से प्रभु के नहवावैं। इ नहावन पतित जन पावन बा। आजु पहिला रामलला क नहावन बा॥ ३-२७-२ ॥ दुसरा नहावन सावित्री करावैं। ब्रह्मा के कमंडल से जल लै नहवावैं । इ नहावन सुभाव से सुहावन बा। आजु दूजा रामलला क नहावन बा॥ ३-२७-३ ॥ तीसरा नहावन पार्बती करावैं। शंकर जटा से जल ले कै नहवावैं। इ नहावन सुजन मनभावन बा। आजु रामजी कइ तीसरा नहावन बा॥ ३-२७-४ ॥ चौथा नहावन इंदिरानी करावैं। आकाशगंगा के जल से नहवावैं। इ नहावन जगत के लुभावन बा। आजु रामजी कइ चौथा नहावन बा॥ ३-२७-५ ॥ पँचवाँ नहावन अरुंधती करावैं। सरजू के जल से प्रभु के नहवावैं। इ नहावन गिरिधर के ललचावन बा। आजु रामजी कइ पँचवाँ नहावन बा॥ ३-२७-६ ॥

(गीत अट्ठाईस) धगड़िनी बड़ी हरजाई ललनजी के नारौ न काटै॥ ३-२८-१ ॥ रामलला गोद लिये करै ठनगनिया। नाचि कूदि मटक रही अवध की धगड़िनियाँ। हँसै सब अवध की लुगाई ललन जी के नारौ न काटै॥ ३-२८-२ ॥ राजा करैं हार ले के बहुत मनुहरिया। मोतियन के थार भरे सब महतरिया। एकउ न मानै कहाई ललन जी के नारौ न काटै॥ ३-२८-३ ॥ गारी हँसि देईं सब रानी पनिहारी। काहे ठनगनी करै धगड़िन छिनारी। प्रीति रीति कछु न कहि जाई ललन जी के नारौ न काटै॥ ३-२८-४ ॥ कोठा न लेबै अटारी न लेबै। हीरा न लेबै मोती थारी न लैबे। लेबै न अन्न-धन-गाई ललन जी के नारौ न काटै॥ ३-२८-५ ॥ गिरिधर प्रभु के नग न्यारी हम लेबै। कौसल्या रानी जी के सारी हम लेबै। जहाँ राजे प्रथम रघुराई ललन जी के नारौ न काटै॥ ३-२८-६ ॥

(गीत उन्तीस) रामलला रूप कौसल्या माता मुदित निहारहिं हो। हरि-हरि लागे नहीं कहुँ मोरि डीठि पलक पल-पल टारहिं हो॥ ३-२९-१ ॥ एक बूढ़ी सखी हँसी बोली तजहु रानी बिसमय हो। रानी एकटक लला के निहारहु डिठिया न लागहिं हो॥ ३-२९-२ ॥ माई कै न कबौं डीठि लागै अमिय सम मीठि होइ हो। इ तो बेद औ पुरानहूँ बखानतसब जग जानत हो॥ ३-२९-३ ॥ अवध औ मिथिला कै नारि सकल अति नागरी हो । इहाँ कोउ नहिं बाटै टोनहियाँ इहै जिय जानहु हो॥ ३-२९-४ ॥ लंका में बाटै एक टोनहिया बहिनिया उ रवने क हो। रानी ललन के उहीं से बचावहु जग जस पावहु हो॥ ३-२९-५ ॥ नदीया क गाड़ा रवनवाँ सुपनखी भारत पठऐसि हो। उ त रूईया चिरैया की नाईं भतारगाड़ी टहरै हो॥ ३-२९-६ ॥ आपन भतार-पूत खाएसि दूसरे बदे ललचइ हो। उ तो डाइनि बिधवा टोनहियाँ ललन ओसे बचवहु हो॥ ३-२९-७ ॥ बचन सुनत रानी कौसिलाजी गुरु से बिनय करैं हो। आप अहैं रघुबंश के सुरतरु गुरु उपरोहित हो॥ ३-२९-८ ॥ दहिने चरन क अँगूठवा ललाके छाती धीरे देई हो। सब डीठि-मुठि निठुर नसाइ ललन सुख किलकहिं हो॥ ३-२९-९ ॥ अस कहि लपकि कौसल्या रानी गुरुपद पकरिनी हो। रामलला जी की छाती पे दहिनाचरन औंठा धरि दीहिनि हो॥ ३-२९-१० ॥ रामजी की छलिया पै तुरतहिं बिप्र पदचिह्न बना हो। गिरिधर प्रभु बने श्रीवत्स लांछन सुर फूल बरसहिं हो॥ ३-२९-११ ॥

(गीत तीस) माता अरुंधती लखि पुलकीं कौसिला के दुलारि कहैं हो। रानी तू तो आजु चतुर सिरोमनि अग-जग जीत लीहू हो॥ ३-३०-१ ॥ बिष्णु छाती भृगु लात मारेनि तब पदचिह्न बना हो। तू तो गुरुजी से लाल दुलराइ चरन चिह्न बनइयू हो॥ ३-३०-२ ॥ रामलला बिष्णु जी के अंशी इहाँ न भृगु पदचिह्न हो। तोहरे कारने बसिष्ठ पग उर धरैं श्रीवत्स लांछन बना हो॥ ३-३०-३ ॥ एक बात तोहँसे बताई हिरदैया धरि राखेहूँ हो। रानी हमहिं तोहैं एके जामी मरम अति रोचक हो॥ ३-३०-४ ॥ अबहिं सुमित्रा सुत लखन जनम भल लेइहैं हो। ए तो रामजी के साथे बन जैहैं सूपनखी नाक कटिहैं हो॥ ३-३०-५ ॥ रामजी रावन के संघरिहैं अवध फिरी अइहैं हो। रानी करिहैं अचल रामराज मंगल गिरिधर गैइहैं हो॥ ३-३०-६ ॥

(गीत इकतीस) आवहु सब महारानी जेठानी देवरानी आवइ हो। चलइ चली अब कौसिला के भवन लला के आज नहछू हो॥ ३-३१-१ ॥ नेग पाइ धगड़िनी प्रमुदित ललन नारा काटै चली हो। उ त नाभि में समाइ गा तुरतै बिजुरिया जैसे बदरे में हो॥ ३-३१-२ ॥ सोने कै नहरनी लिए नाउनि नख काटै आवै हौ। उ त तुरतै अँगुरियन समान शशि जैसे बदरी में हो॥ ३-३१-३ ॥ अचरज देखि सब बिसमित गुरु राजा रानी सब हो। सब जानि गए ये तो भगवान राम अवधे प्रगट भएँ हो ॥ ३-३१-४ ॥ जगमगी अवध के अँजोरिया तीसरी किरन पूरन हो। गिरिधर बानी बनी चतुर चकोरिया चरित सुधा पीवै हो॥ ३-३१-५ ॥

॥ अवध कै अँजोरिया ॥ ॥ तीसरी किरन सम्पूरन ॥